ॐ साईं राम!!!
Khaparde's Shirdi Diary~~~खापर्डे शिरडी डायरी~~~
११ दिसम्बर १९१०~~~
सुबह प्रार्थना के बाद मैनें हाथ मुँह धोया ,बंबई के श्री हरिभाऊ दीक्षित और उनके कुछ अन्य साथी स्वर्गीय डाँ-आत्माराम पांडुरंग के पुत्र श्री तर्खड , और श्री महाजनी , जो अकोला के अण्णा साहेब महाजनी के चचेरे भाई हैं , के साथ रोज़ की तरह साईं साहेब के पास गए | आज की बातचीत महत्वपूर्ण थी और दो घटनाओं के कारण उल्लेखनीय थी,साईं महाराज ने कहा कि वे एक कोने में बैठा करते थे और उन्होंने अपने शरीर का निचला हिस्सा एक तोते से बदलना चाहा | ये अदला बदली हुई और उन्हें इस बात का अहसास नहीं हुआ | और एक साल में उन्होंने एक लाख रूपये गवा दिए | फिर उन्होंने एक खम्बे के पास बैठना शुरू किया और तब एक विशाल सर्प जागा ,और वह भुत क्रोधित था | वह ऊपर की ओर उछलता था और ऊपर से नीचे की ओर भी गिरता था | फिर उन्होंने इस विषय को बदल दिया और कहा कि वे एक जगह गए और वहां का पाटिल उन्हें तब तक जाने नहीं देता जब तक वे एक बागीचा न लगाएँ और उसमे से होता हुआ पैदल चलने के लिए एक पक्का मार्ग बनाएँ | वो बोले कि उन्होंने दोनों काम पूरे किए | उसी समय कुछ लोग वहां आए | उस आदमी से वे बोले , " मेरे सिवाय तुम्हारी देखभाल करने वाला कोइ नहीं है | " फिर चारों ओर देखते हुए उन्होंने कहा कि , वह उनकी संबंधी है और रोहिला से ब्याही हुई है जो आदमियों को लुटते हैं | फिर वे कहने लगे , दुनिया खराब है लोग अब वैसे नहीं जैसे वे पहले होते थे | पहले वे शुद्ध आचरण वाले और विश्वसनीय होते थे | अब लोग एक दुसरे का विश्वास न करने वाले और किसी भी बात का गलत पक्ष समझने वाले हो गए है , और उसके बाद उन्होंने कुछ और भी कहाँ जो मैं समझ नहीं पाया| ये उनके पिटा , दादा और फिर उनके पिटा और दादा बनाने के बारे में था | अब घटनाओं के बारे में ऐसा है , श्री दीक्षित फल कै, साईं साहेब ने कुछ खाए और बाकी और लोगों में बाँट दिए | बाला साहेब जो एह तालुका के मामेदार रहे थे वहां थे आयर बोले कि साईंमहाराज केवल एक किस्म के ही फल दे रहे थे | मेरे पुत्र औने मित्र पटवर्धन को बतलाया कि साईं महाराज ने मेरे जिस भक्ति भाव से वे फल अर्पित किए गए थे उसी के अनुपात में उन्हें स्वीकार या अस्वीकार किया | मेरे पुत्र , बाबा ने यश बात मुझे और पटवर्धन को भी बतलाने की कोशिश की | इससे थोड़ा शोर हुआ और साईं महाराज ने मुझको ऐसी नज़रों से देखा जो अदभुत रूप से चमक रही थी और क्रोध की चिंगारी लिए हुई थी | उन्होंने मुझसे इस सवाल का जवाब माँगा कि मैंने क्या कहा था | मैंने उत्तर दिया कि मैं कुछ नहीं कह रहा था और बच्चे आपस में बात कर रहे थे | उन्होंने मेरे पुत्र और पटवर्धन की ओर देखा और फिर तुरंत ही अपना रुख बदल लिया | आखिर में बाला साहेब मिरीकर ने ऐसा कहा कि साईं महाराज सारा वक्त हरिभाऊ दीक्षित से बात कर रहे थे | दोपहर में हम लोग जब भोजन कर रहे थे श्री मिरीकर के पिताजी आए जो अहमदनगर में इनामदार और विशेष मजिस्ट्रेट हैं | वे पुराणी चाप के बहुत सम्मानीय व्यक्ति हैं | मुझे उनकी बाते बहुत पसंद आई | शाम के समय हमने रोज़ की तरह साईं साहेब के दर्शन किए और हम रात क बात करने बैठे , और श्री नूलकर के पुत्र विस्वनाथ ने भजन किए जैसे वह हर रोज़ करता है|
जय साईं राम!!!