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Friday, April 20, 2012

ॐ साईं राम


३० जनवरी १९१२-


मैं प्रातः जल्दी जागा किन्तु उठ कर दैनिक कार्य करना मुझे रूचिकर नहीं लगा, क्योंकि मुझे डर था कि कहीं मैं कल की तरह दिन भर सोता ना रहूँ। फिर भी दिन चढने से पूर्व उठा और अपनी प्रार्थना की और फिर बापू साहेब जोग के पास 'परमामृत' पढने चला गया। उपासनी शास्त्री, श्रीमति कौजल्गी, और बापू साहेब वहाँ थे। हमने पढने में अच्छी प्रगति की। हमने साईं महाराज के बाहर जाते हुए और फिर मस्जिद में लौटते हुए दर्शन किए। उन्होंने मुझसे पूछा कि हमने अपनी सुबह कैसे व्यतीत की? मैंने उन्हें सब बताया जो जो भी हमने किया था। दोपहर की आरती के बाद मैं लौटा और भोजन किया। उसके पश्चात मैंने बैठकर दैनिक समाचार पत्र पढा और कुछ पत्र लिखे। बाद में दीक्षित ने रामायण पढी, माधव राव देशपाँडे और बापू साहेब जोग भी पारायण में सम्मिलित हुए।


इस गाँव के कोई दो लोग और सीताराम डेंगले के छोटे भाई आए और पारायण के बाद हमने कुछ देर बातें की। उनमें से एक ने रामायण का छँद पढा। फिर हम साईं महाराज के दर्शन के लिए गए। उन्होंने पुनः मुझसे पूछा कि दोपहर में मैंने क्या किया? मैंने उन्हें बताया कि मैंने बैठ कर कुछ पत्र लिखे। वे मुस्कुराए और बोले- "बेकार बैठने से हाथ चलाना अच्छा है"।


हमने शाम की सैर के समय साईं महाराज के दर्शन किए और शेज आरती में सम्मिलित हुए। आज रात को भजन नहीं हुए, भागवत के पठन में सारा समय बीता, और दीक्षित की रामायण भी हुई।



जय साईं राम