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Monday, April 2, 2012

ॐ साईं राम

५ जनवरी १९१२-

यद्यपि मैं रात को ठीक से नहीं सो पाया परन्तु सुबह जल्दी उठ गया। मैं काँकड आरती में सम्मिलित हुआ। साईं महाराज प्रसन्न चित्त थे। मेरा पुत्र बाबा और गोपालराव दोरले उनके पास गए। उन दोनो को देखते ही साईं महाराज ने कहा " जाओ "। इसे शिरडी छोडने की अनुमति समझ कर दोनो ने बाला भाऊ का ताँगा किया और चले गए। मैंने प्रार्थना की , साईं महाराज को बाहर जाते हुए और जब वे लौटे तब आते हुए देखा। वे अत्यँत प्रसन्नचित्त थे। बहुत से लोग आए। दोपहर की आरती और भोजन के बाद मैं कुछ देर लेटा और दीक्षित की रामायण सुनी। वहाँ उपासनी, भीष्म और माधवराव भी उपस्थित थे।

लगभग शाम पाँच बजे मैं भीष्म और अपने पुत्र बलवँत के साथ साईं महाराज के दर्शन के लिए गया। उन्होने बताया कि किस प्रकार उनकी तबीयत ठीक नहीं थी और मजाक में ही अपनी बीमारी के बारे में बताया। बाला भाऊ जोशी भुना चना लाए थे। साईं महाराज ने थोडा खाया और बाकी बाँट दिया। फिर जब साईं महाराज घूमने निकले तब हम चावडी के पास खडे हुए। तदन्तर हमने वाडे में ही आरती, भीष्म के भजन और दीक्षित की रामायण सुनी। उन्होंने दो अध्याय पढे। आज धूलिया से कुछ लोग आए और लौट गए।

जय साईं राम!!!