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Friday, April 20, 2012

ॐ साईं राम


२३ जनवरी १९१२-


मैं काँकड आरती के लिए समय पर उठ गया और दिन उगने के कुछ देर बाद ही प्रार्थना समाप्त कर ली। अपने बिस्तर से उठने के बाद साईं साहेब ने आज एक शब्द भी नहीं कहा। परन्तु जब हमने उन्हें रोज़ की तरह बाहर जाते हुए देखा तब वे अत्यँत मजाकिया मूड में थे। काका दीक्षित को हमारे साथ ना देख कर उन्होंने कहा कि वे जरूर पेट साफ कर रहे होंगे। जब वे दिखे तब बाबा ने कहा- "तुमने स्वयँ को तो स्वच्छ नहीं किया और सोचा कि पहले मुझे नमस्कार कर लो।" मैंने बापू साहेब जोग, उपासनी और काका दीक्षित के साथ परमामृत पढी, फिर हम साईं महाराज के दर्शन के लिए मस्जिद गए। वे चुप रहने के भाव में थे। उन्होंने एक शब्द भी नहीं कहा और दोपहर की आरती शाँतिपूर्वक सम्पन्न हो गई। इसके बाद हम वापिस आए और भोजन किया।


माधवराव देशपाँडे ने माननीय श्रीमति रसेल को साईं महाराज का चित्र और ऊदी भेजने की अनुमति ले ली है। मैं भी उन्हें कुछ लिखना चाहता था लेकिन मेरा मन नहीं किया और मैं एक स्कूल अध्यापक से बात करने लगा जो कि अपने परिवार के साथ अभी साईं महाराज के दर्शन के लिए आए थे। दीक्षित ने रामायण पढी, फिर हम साईं महाराज के दर्शन के लिए उस समय गए जब वे शाम की सैर के लिए निकले। उस समय भी उन्होंने कुछ विशेष नहीं कहा।


रात को भीष्म ने इस सप्ताह में पहली बार भजन गाए और दीक्षित ने रामायण पढी। श्रीमति लक्ष्मीबाई कौजल्गी यहाँ रहने के बारे में हमेशा सोचती हैं और साईॅ महाराज ने कहा कि शायद अपने भले के लिए वह ऐसा ही करेंगी। मेरे पुत्र बलवन्त को आज सुबह थोडा पसीना आया।


जय साईं राम