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Monday, April 30, 2012

ॐ साईं राम


११ फरवरी १९१२-


प्रातः जब तक मैंने अपनी प्रार्थना समाप्त की, मैंने देखा कि श्री गडरे उठ गए थे, और मैं बैठ कर उनसे बातें करने लगा। उन्हें लौटने की अनुमति मिल गई और वह नासिक वापिस चले गए। हमने साईं महाराज के बाहर जाते समय दर्शन किए और अपनी पँचदशी के पाठ की सँगत उपासनी, बापूसाहेब जोग और श्रीमति कौजल्गी के साथ की। नासिक जिले के श्री लेले, जो कि नासिक जिले के राजस्व निरीक्षक हैं, उन्होंने भी पाठ में भाग लिया। वह बहुत भले व्यक्ति हैं और साईं महाराज उन्हें बहुत पसँद करते हैं।


साईं महाराज के वापिस लौटने के बाद मैं रोज़ की तरह मस्जिद में गया और देखा कि बहुत से व्यक्ति वहाँ बैठे हैं। उनमें से अधिकतर अजनबी हैं। उनमें से एक अकोला पुलिस में हैं, वह मुझे देखते ही बोले कि उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है और नागपुर के बैरिस्टर श्री गोविन्द राव देशमुख के साथ नौकरी में पदभार ग्रहण कर लिया है।


दोपहर की आरती के बाद मैं कुछ देर के लिए लेट गया और फिर दीक्षित के रामायण पुराण में सम्मिलित हुआ। बाद में हम साईं महाराज की शाम की सैर के समय उनके दर्शन के लिए गए और श्री लेले को वहाँ पाकर उनसे बातें करने लगे। शाम को वाडे में और बाद में शेज आरती, भीष्म का भागवत पाठ, और दीक्षित की रामायण हुई। शिवानन्द शास्त्री को आज लौटने की अनुमति नहीं मिली।


जय साईं राम