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Friday, April 20, 2012

ॐ साईं राम


२६ जनवरी १९१२-


आज मैं प्रातः बहुत जल्दी उठा और समय का गलत अनुमान लगा कर सूरज उगने की प्रतीक्षा करता रहा। मैंने प्रार्थना की और बरामदे में एक कोने से दूसरे कोने तक घूमता रहा। मुझे लगता है कि मैं लगभग एक या डेढ घँटा जल्दी उठ गया। सर्योदय के बाद मैंने अपने दिनचर्या के कार्य सम्पन्न किए और फिर हम बाहर गए। मुझे पता चला कि पूना से ढाँडे बाबा आए हैं। मैं स्वाभाविक रूप से उनसे बात करने लगा। उन्होंने मुझे तिलक का नवीनतम पत्र दिखाया। राज्याभिषेक आया और गया लेकिन तिलक जेल से बाहर नहीं आ पाए। हम उनके और डा॰ गरडे के बारे में बात करते रहे, जिन्होंने बेकार में ही अब मुसीबत खडी कर दी है और वह विशेषतः मुझे नुकसान पहुँचाना चाहते हैं।


हमने कुछ देर 'परमामृत' पढी और फिर साईं महाराज के दो बार, बाहर जाते हुए और वापिस मस्जिद में आते हुए दर्शन किए। मुझे कुछ अस्वस्थता महसूस हुई, अतः मैं कुछ देर लेटा। ढाँडे बाबा लगभग ४ बजे चले गए। फिर दोपहर को दीक्षित ने रामायण पढी। हम साईॅ महाराज के दर्शन के लिए गए और चावडी के सामने टहले। रात को वाडे की आरती, शेज आरती, भीष्म के भजन और दीक्षित की रामायण हुई।

आज मुझे अँग्रेज़ी के कुछ पत्र मिले।


जय साईं राम