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Monday, April 30, 2012

ॐ साईं राम


९ फरवरी १९१२-


मैं रोज़ की तरह उठा, प्रार्थना की, और पँचदशी की सँगत में गया। इस दौरान हमने साईं महाराज को बाहर जाते हुए देखा। सामूहिक पाठ के बाद हम मस्जिद में गए। साईं बाबा बहुत प्रसन्नचित्त थे। वह युवक किष्य, जिसे हम पिष्य कहते हैं, हमेशा की तरह आया और उसे देख कर साईं साहेब ने कहा कि पिष्य अपने पिछले जन्म में एक रोहिल्ला था, कि वह एक बहुत अच्छा इंसान था, कि वह बहुत पूजा पाठ करता था और साईं साहेब के दादा के पास अतिथि बन कर आया था। उनकी एक बहन थी जो कि अलग रहा करती थी। स्वँय साईं साहेब युवा थे, उन्होंने मजाक में सुझाव दिया कि रोहिल्ला को उस से विवाह कर लेना चाहिए। ऐसा ही हुआ। रोहिल्ला ने उसके साथ अँततः विवाह कर लिया। लम्बे समय तक वह अपनी पत्नि के साथ वहाँ रहा और फिर आखिरकार उसके साथ चला गया, कोई नहीं जानता कि कहाँ। वह मर गया और साईं साहेब ने उसे उसकी वर्तमान माँ के गर्भ में डाल दिया। उन्होंने कहा कि पिष्य बहुत ही भाग्यशाली होगा और हजारों का सँरक्षक होगा।


दोपहर की आरती रोज़ की तरह सँपन्न हुई। उसके मध्य में साईं साहेब ने शिवानन्द शास्त्री से कुछ कहा और कुछ सँकेत भी दिए। दुर्भाग्यवश शास्त्री उसका अभिप्राय ग्रहण नहीं कर पाए। साईं साहेब ने बापू साहेब जोग को भी सँकेत दिए। थाने के अभिवक्ता श्री ओके भी यहाँ है I मैंने उन्हें कहा कि वे बाबा गु्प्ते और दूसरे मित्रों को मेरी याद दिलाऐं।


जय साईं राम