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Friday, April 20, 2012

ॐ साईं राम


२८ जनवरी १९१२-


मैं रात बहुत अच्छी नींद सोया और दिन चढने से पूर्व प्रार्थना के लिए समय पर उठ गया। अपने दिनचर्या के कार्य पूरे किए तथा लगभग ८ बजे खँडोबा के मँदिर पहुँच गया जहाँ उपासनी रहते हैं। कुछ देर उनके साथ बैठकर बात की। यह एक छोटा सा सुँदर स्थान है। हमने 'परमामृत' का पठन बापू साहेब जोग के घर पर किया क्योंकि मेरे निवास स्थान पर वेदान्त विषय पर बातचीत और चर्चा मेरे पुत्र बलवन्त को परेशान करती है।


हमने साईं महाराज के बाहर जाते हुए और फिर मस्जिद में लौटते हुए दर्शन किए। उन्होंने मुझसे पूछा कि हमने अपनी सुबह कैसे बिताई? मैंने उन्हें वह सब बताया जो हमने किया था। वे प्रसन्न चित्त थे। दोपहर की आरती निर्विघ्न समाप्त हुई, सिवाय इस बात के कि राधाकृष्णा माई आहत और दुखी थीं। उन्होंने दरवाज़ा बन्द कर लिया था, अतः आरती का सामान मिलने में देरी हुई।


दोपहर के भोजन के बाद मैंने कुछ देर आराम किया, फिर एक पत्र लिखा और कुछ देर दीक्षित की रामायण सुनी। फिर हम साईं महाराज की शाम की सैर के समय उनके दर्शन के लिए गए। इसके पश्चात वाडे में आरती हुई परन्तु भीष्म के भजन नहीं हुए क्योंकि वह अस्वस्थ थे। रात में शेज आरती के बाद जब हम लौटे तब दीक्षित की रामायण हुई।


जय साईं राम