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Monday, April 30, 2012

ॐ साईं राम


७ फरवरी १९१२-


मैं जल्दी उठा, प्रार्थना की और रोज़ की तरह हमारी पँचदशी की सँगत हुई। मैं साईं महाराज से अनुमति माँगने नहीं गया। हमने उन्हें बाहर जाते हुए देखा, और जब वे लौटे तब हम मस्जिद में गए। मैंने देखा कि साईं महाराज बैठे हुए थे और बाहर आँगन में एक व्यक्ति एक बँदर को उसके द्वारा सिखाई गई तरकीबों का प्रदर्शन कर रहा था। वहाँ पर एक पेशेवर गायिका और नर्तकी भी आई हुई थी। उसकी आवाज़ बहुत मधुर थी और उसने धार्मिक गानें सुनाए। बाद में ब्रह्मानन्द बाई और उसके सँगी सालूबाई और शिवानन्द शास्त्री आए। उन्होंने अर्चना की और ब्रह्मानन्द बाई ने, जिन्हें वे माईसाहेब कहते हैं, बडी ही सुन्दरता से गाया। साईं साहेब ने आसन आदि लाने का निर्देश दिया, और जब सब चीज़ों की व्यवस्था हो गई तब हम सब अपने स्थानों पर खडे हो गए। माईसाहेब ने पुनः दो भजन इतनी मधुरता से गाए कि हम सब मन्त्रमुग्ध से खडे रह गए। मुझे लगता है कि साईं महाराज को वे पसँद आए। फिर हमने रोज़ाना की तरह आरती की और दोपहर के भोजन के लिए वापिस आ गए। माईसाहेब और उनके लोगों ने मेरे स्थान पर ही भोजन किया। भोजन के उपरान्त बामनगाँवकर और माईसाहेब वापसी की अनुमति माँगने साईं साहेब के पास गए। माईसाहेब और सालूबाई को लौटने की अनुमति मिल गई और वे ताँगे से चले गए। शिवानन्द शास्त्री और बामनगाँवकर को साईं महाराज के द्वारा रोक लिया गया, और वे ठहर गए।


मैं लेटा और एक अच्छी झपकी ली। इसके बाद दीक्षित ने रामायण पढी और स्वँय मैने दासबोध का पठन किया। हम सबने साईं महाराज की सैर के समय उनके दर्शन किए। वाडा आरती के बाद हम शेज आरती में सम्मिलित हुए। रात को भीष्म ने भागवत का पठन किया और दीक्षित ने रामायण का।


जय साईं राम