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Monday, April 2, 2012

ॐ साईं राम

६ जनवरी १९१२-

मैं प्रातः दिन चडने के पूर्व ही उठ गया। रोज़ की भाँति प्रार्थना की और साईं महाराज को बाहर जाते हुए देखा। जब वे चले गए तो मैं बाला साहेब भाटे के पास गया और उनसे रँगनाथ स्वामी की मराठी में रचित योग वशिष्ठ की प्रति माँगी। परन्तु वापिस आ कर मैंने रामायण ही पढी। हम सभी ने दोपहर की आरती की और हमेशा की तरह भोजन किया। मैं दोपहर को लेटना नहीं चाहता था, किंतु शीघ्र ही नींद ने मुझे घेर लिया और मैं लगभग दो घँटे सोया।

दीक्षित ने रामायण पढी। बाद में मैं मस्जिद गया और साईं महाराज के दर्शन किए। वे प्रसन्न चित थे और किसी विषय पर चर्चा हो रही थी।

शाम को रोज़ की भाँति वाडे में आरती और रात को चावडी में शेज आरती में सम्मिलित हुआ। आझ साईं महाराज अत्याधिक प्रसन्न थे। उन्होंने मेधा की ओर देख कर कुछ गुप्त आध्यात्मिक ( mystic ) सँकेत किए, जिसे यौगिक भाषा में "दृष्टिपात" कहा जाता है। धूलिया से एक ज्योतिषी आए हैं और उपासनी के साथ वाडे में अतिथि बन कर ठहरे हैं। रात को भीष्म के भजन और दीक्षित की रामायण सुनी।

जय साईं राम