ॐ साईं राम
दादा साहेब खापर्डे की जीवनी के लेखक ने आगे जोड़ा है कि दादा साहेब शिरडी साईं बाबा के दर्शन और आशीर्वाद प्राप्त करने के बाद अमरावती लौट गए। लेखक ने आगे लिखा है कि डायरी में इस बात का उल्लेख नहीं मिलता कि साईं बाबा से सँकरन नायर* के बारे में किए गए प्रश्नों का क्या उत्तर था। शायद यही निश्चय किया गया होगा कि इस विषय में गोपनीयता बरती जाएगी और दादा साहेब ने वचन का पालन किया होगा। यह इस बात का उदाहरण है कि डायरी से गोपनीय बातों को जानबूझ कर निकाला गया। अब जब कि दादा साहेब की मूल डायरियाँ राष्ट्रीय लेखागार के पास हैं, इन डायरियों पर आगे अनुसँधान के लिए जाँच और निरीक्षण का इँतज़ार है।
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*श्री के॰पी॰एस॰ मेनन, आई॰सी॰एस, जो कि सॅर सँकरन नायर के दामाद हैं, उन्होंने नवँबर १९६७ में भारत सरकार के प्रकाशन विभाग के द्वारा प्रकाशित उनके श्वसुर की जीवनी में कहा है कि सॅर सँकरन नायर १९१५ मे मध्य में वायसराय की कार्यकारी परिषद के सदस्य चुने गए थे( पृष्ठ ५५ ), पर उन्होंने १९१९ के जलियाँवाला बाग के हत्याकाँड के विरोध में इस्तीफा दे दिया ( पृष्ठ१०४-१०५ )। सॅर सँकरन का योग में पक्का विश्वास था ( पृष्ठ १३३ ) और उनका मस्तिष्क धीरे धीरे धर्म की ओर मुड़ गया। २४-४-१९३४ को एक कार दुर्घटना में सिर में चोट लगने के कारण उनकी मृत्यु हो गई।
श्री वी॰बी॰खेर द्वारा लिखित प्रथम परिशिष्ट की समाप्ति
आगे जारी रहेगा॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰�� �॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰
जय साईं राम
दादा साहेब खापर्डे की जीवनी के लेखक ने आगे जोड़ा है कि दादा साहेब शिरडी साईं बाबा के दर्शन और आशीर्वाद प्राप्त करने के बाद अमरावती लौट गए। लेखक ने आगे लिखा है कि डायरी में इस बात का उल्लेख नहीं मिलता कि साईं बाबा से सँकरन नायर* के बारे में किए गए प्रश्नों का क्या उत्तर था। शायद यही निश्चय किया गया होगा कि इस विषय में गोपनीयता बरती जाएगी और दादा साहेब ने वचन का पालन किया होगा। यह इस बात का उदाहरण है कि डायरी से गोपनीय बातों को जानबूझ कर निकाला गया। अब जब कि दादा साहेब की मूल डायरियाँ राष्ट्रीय लेखागार के पास हैं, इन डायरियों पर आगे अनुसँधान के लिए जाँच और निरीक्षण का इँतज़ार है।
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*श्री के॰पी॰एस॰ मेनन, आई॰सी॰एस, जो कि सॅर सँकरन नायर के दामाद हैं, उन्होंने नवँबर १९६७ में भारत सरकार के प्रकाशन विभाग के द्वारा प्रकाशित उनके श्वसुर की जीवनी में कहा है कि सॅर सँकरन नायर १९१५ मे मध्य में वायसराय की कार्यकारी परिषद के सदस्य चुने गए थे( पृष्ठ ५५ ), पर उन्होंने १९१९ के जलियाँवाला बाग के हत्याकाँड के विरोध में इस्तीफा दे दिया ( पृष्ठ१०४-१०५ )। सॅर सँकरन का योग में पक्का विश्वास था ( पृष्ठ १३३ ) और उनका मस्तिष्क धीरे धीरे धर्म की ओर मुड़ गया। २४-४-१९३४ को एक कार दुर्घटना में सिर में चोट लगने के कारण उनकी मृत्यु हो गई।
श्री वी॰बी॰खेर द्वारा लिखित प्रथम परिशिष्ट की समाप्ति
आगे जारी रहेगा॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰�� �॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰
जय साईं राम