ॐ साईं राम
२९ दिसँबर १९११ की प्रविष्टि का अँश-
"॰॰॰॰॰॰॰॰॰बाद में हम साईं बाबा के पास गए और मस्जिद में उनके दर्शन किए। उन्होंने आज दोपहर को मेरे पास सन्देश भेजा कि मुझे यहाँ और दो महीने रुकना पडेगा। दोपहर में उन्होंने अपने सन्देश की पुष्टि की और फिर कहा कि उनकी ' उदी ' में अत्याधिक आध्यात्मिक गुण है | उन्होंने मेरी पत्नी से कहा कि गवर्नर एक सैनिक के साथ आया और साईं महाराज से उसकी अनबन हुई और उन्होंने उसे बाहर निकाल दिया, और आखिरकार गवर्नर को उन्होंने शाँत कर दिया। भाषा अत्यंत संकेतात्मक है इसीलिए उसकी व्याख्या करना कठिन है।"
बाबा साहेब खापर्डे ने अपने पिता की जीवनी में "ऊदी" को साईं बाबा की "कृपा", गिरफ्तारी के आदेश को गवर्नर का "बर्छा" और बाबा की दैवीय शक्ति को "त्रिशूल" कहा है।
२९ दिसँबर १९११ की शिरडी डायरी की प्रविष्टि में श्रीमान नाटेकर का, जिन्हें 'हमसा' और 'स्वामी' भी कहते थे, उल्लेख मिलता है। वह थोड़े हल्के, गोरे और तीखे नैन नक्श वाले थे, उनकी वाणी मधुर थी और उन्हें बातचीत पर अच्छी पकड़ थी। उन्होंने खापर्डे को अपनी तथाकथित धार्मिकता, हिमालय और मान सरोवर की यात्रा की कहानियाँ सुना कर उनका अनुग्रह प्राप्त कर लिया था। जब दादा साहेब इँग्लैंड में थे तब उन्होंने एक महीने के लिए खापर्डे परिवार के अतिथि सत्कार का आनन्द भी उठाया था।
१९१३ में कभी पता चला कि दादा साहेब की ९ डायरियाँ जो की एक लकडी के बक्से में ताले में रखी गईं थी, वह चोरी हो गईं थी, और बाद में सरकार ने उन्हें लौटाया था, क्योंकि उसमें फँसाने वाला कोई तथ्य नहीं था।
इसके बहुत बाद खापर्डे को पता चला कि 'हमसा' एक सी॰आई॰डी॰ जासूस थे जिन्हें असल में सरकार ने ही खापर्डे परिवार में भेजा था और वह दादा साहेब के पीछे उनकी गतिविधियों का पता लगाने के लिए ही शिरडी गए थे।
आगे जारी रहेगा॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰
जय साईं राम
२९ दिसँबर १९११ की प्रविष्टि का अँश-
"॰॰॰॰॰॰॰॰॰बाद में हम साईं बाबा के पास गए और मस्जिद में उनके दर्शन किए। उन्होंने आज दोपहर को मेरे पास सन्देश भेजा कि मुझे यहाँ और दो महीने रुकना पडेगा। दोपहर में उन्होंने अपने सन्देश की पुष्टि की और फिर कहा कि उनकी ' उदी ' में अत्याधिक आध्यात्मिक गुण है | उन्होंने मेरी पत्नी से कहा कि गवर्नर एक सैनिक के साथ आया और साईं महाराज से उसकी अनबन हुई और उन्होंने उसे बाहर निकाल दिया, और आखिरकार गवर्नर को उन्होंने शाँत कर दिया। भाषा अत्यंत संकेतात्मक है इसीलिए उसकी व्याख्या करना कठिन है।"
बाबा साहेब खापर्डे ने अपने पिता की जीवनी में "ऊदी" को साईं बाबा की "कृपा", गिरफ्तारी के आदेश को गवर्नर का "बर्छा" और बाबा की दैवीय शक्ति को "त्रिशूल" कहा है।
२९ दिसँबर १९११ की शिरडी डायरी की प्रविष्टि में श्रीमान नाटेकर का, जिन्हें 'हमसा' और 'स्वामी' भी कहते थे, उल्लेख मिलता है। वह थोड़े हल्के, गोरे और तीखे नैन नक्श वाले थे, उनकी वाणी मधुर थी और उन्हें बातचीत पर अच्छी पकड़ थी। उन्होंने खापर्डे को अपनी तथाकथित धार्मिकता, हिमालय और मान सरोवर की यात्रा की कहानियाँ सुना कर उनका अनुग्रह प्राप्त कर लिया था। जब दादा साहेब इँग्लैंड में थे तब उन्होंने एक महीने के लिए खापर्डे परिवार के अतिथि सत्कार का आनन्द भी उठाया था।
१९१३ में कभी पता चला कि दादा साहेब की ९ डायरियाँ जो की एक लकडी के बक्से में ताले में रखी गईं थी, वह चोरी हो गईं थी, और बाद में सरकार ने उन्हें लौटाया था, क्योंकि उसमें फँसाने वाला कोई तथ्य नहीं था।
इसके बहुत बाद खापर्डे को पता चला कि 'हमसा' एक सी॰आई॰डी॰ जासूस थे जिन्हें असल में सरकार ने ही खापर्डे परिवार में भेजा था और वह दादा साहेब के पीछे उनकी गतिविधियों का पता लगाने के लिए ही शिरडी गए थे।
आगे जारी रहेगा॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰
जय साईं राम