ॐ साईं राम
दादा साहेब यात्रा में अपनी डायरी अपने साथ रखते थे। यह उनकी सामान्य आदत थी कि वह सोने से पूर्व दिन की प्रविष्टियाँ लिखते थे और इस नियम का वह सतर्कतापूर्वक पालन करते थे। कई ऐसी प्रविष्टियाँ हैं जो कि रात १ या २ बजे रेलवे स्टेशन के प्रतीक्षालय में सोने से पूर्व अँकित की गई। आगे के वर्षों में जब रात को लेटने से पूर्व दिन भर की घटनाओं को अँकित करना उन्हें असुविधाजनक लगने लगा तब उन्होंने पिछले दिन की घटनाओं को अगले दिन प्रातः अँकित करना शुरू कर दिया। अतः स्वप्न, दृष्टाँत और गहरी नींद आदि का उल्लेख इन डायरियों में मिलता है। चाहे घटना छोटी हो या बड़ी, उसके विषय में एक प्रविष्टि तो उनके दैनिक विवरण में मिलती ही है। आँगतुकों के नाम, बातचीत का सार, और प्रमुख प्रविष्टियों के सँवाद, विस्तार में प्रश्न-उत्तर आदि स्पष्ट, साफ और समझी जा सकने वाली लिखावट में बिना कुछ मिटाए या बिना किसी उपरिलेखन के पृष्ठ दर पृष्ठ मिलती है। यहाँ तक कि जब वह अस्वस्थ भी होते थे, तब भी अपनी डायरी लिखने में नहीं चूकते थे। केवल उनकी मृत्यु के दिन जो कि १ जुलाई, १९३८ था, और उसके एक दिन पूर्व उन्होंने कोई प्रविष्टि नहीं की, अतः उनकी अँतिम प्रविष्टि २९ जून १९३८ को पाई गई।
दादा साहेब खापर्डे ने साईं बाबा के जीवन काल में पाँच बार शिरडी की यात्रा की। उनकी शिरडी यात्रा का कालानुक्रमिक विवरण और उनके शिरडी में निवास की अवधि का विवरण नीचे दिया गया है-
आगे जारी रहेगा॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰
जय साईं राम
दादा साहेब यात्रा में अपनी डायरी अपने साथ रखते थे। यह उनकी सामान्य आदत थी कि वह सोने से पूर्व दिन की प्रविष्टियाँ लिखते थे और इस नियम का वह सतर्कतापूर्वक पालन करते थे। कई ऐसी प्रविष्टियाँ हैं जो कि रात १ या २ बजे रेलवे स्टेशन के प्रतीक्षालय में सोने से पूर्व अँकित की गई। आगे के वर्षों में जब रात को लेटने से पूर्व दिन भर की घटनाओं को अँकित करना उन्हें असुविधाजनक लगने लगा तब उन्होंने पिछले दिन की घटनाओं को अगले दिन प्रातः अँकित करना शुरू कर दिया। अतः स्वप्न, दृष्टाँत और गहरी नींद आदि का उल्लेख इन डायरियों में मिलता है। चाहे घटना छोटी हो या बड़ी, उसके विषय में एक प्रविष्टि तो उनके दैनिक विवरण में मिलती ही है। आँगतुकों के नाम, बातचीत का सार, और प्रमुख प्रविष्टियों के सँवाद, विस्तार में प्रश्न-उत्तर आदि स्पष्ट, साफ और समझी जा सकने वाली लिखावट में बिना कुछ मिटाए या बिना किसी उपरिलेखन के पृष्ठ दर पृष्ठ मिलती है। यहाँ तक कि जब वह अस्वस्थ भी होते थे, तब भी अपनी डायरी लिखने में नहीं चूकते थे। केवल उनकी मृत्यु के दिन जो कि १ जुलाई, १९३८ था, और उसके एक दिन पूर्व उन्होंने कोई प्रविष्टि नहीं की, अतः उनकी अँतिम प्रविष्टि २९ जून १९३८ को पाई गई।
दादा साहेब खापर्डे ने साईं बाबा के जीवन काल में पाँच बार शिरडी की यात्रा की। उनकी शिरडी यात्रा का कालानुक्रमिक विवरण और उनके शिरडी में निवास की अवधि का विवरण नीचे दिया गया है-
आगे जारी रहेगा॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰
जय साईं राम