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Thursday, June 28, 2012

ॐ साईं राम

३१ दिसँबर, शुक्रवार, १९१५-
शिरडी-भुसावल

मैं काँकड़ आरती के लिए मस्जिद जाना चाहता था पर एन मौके पर अनिच्छुक हो गया और नहीं गया। प्रातः की प्रार्थना के बाद मैं मस्जिद जा रहा था कि राव बहादुर साठे ने मुझे पकड़ लिया और मुझे अपनी माडी को ले गए। वहाँ कोई ८ सज्जन इकट्ठा हुए थे और उन्होंने मुझसे कहा कि वे सब साईं बाबा सँस्थान के लिए व्यवस्था करना चाहते हैं। उनके पास एक अच्छी योजना है और मैंने उन्हें परामर्श दिया कि उन्हें उन लोगों से धन इकट्ठा करने का प्रयास नहीं करना चाहिए जिन्हें स्वयँ साईं बाबा ने दिया है। उन्होंने मेरे सुझाव को मान लिया। इन सब में समय लग गया और हमें आरती के लिए विलम्ब हुआ, पर हम समय पर पहुँच गए और मुझे चँवर या कहें तो मयूर पँख मिला।

भोजन के बाद मैं माधवराव देशपाँडे के साथ गया और मुझे बिना किसी परेशानी के लौटने की अनुमति मिल गई। मेरी पत्नि, मनु ताई, उमा, और बच्चे यहीं रहेंगे। मस्जिद के आँगन में मैं मलकापुर के वासुदेवराव दादा पिरिप्लेकर और कोपरगाँव के प्रश्नकर्ता प्रबँधक श्रीमान भागवत से मिला।

मैं तैयार हुआ और बाला भाऊ के ताँगे से कोपरगाँव पहुँचा और स्टेशन मास्टर से बात की। उनके सहायक एक समय अमरावती में थे। मैंने शाम ६॰३० की गाड़ी ली और मनमाड पहुँचा और उस यात्री गाड़ी में चढ़ा जो रात ८॰३० बजे छूटती है। मैं एक डिब्बे में अकेला यात्री था और प्रातः ४ बजे मैं भुसावल पहुँचा तथा प्रतीक्षालय में गया।

जय साईं राम