ॐ साईं राम
१५ मार्च, शुक्रवार, १९१२-
शिरडी से भुसावल-
मैं प्रातः जल्दी उठा, प्रार्थना की और काँकड़ आरती में सम्मिलित हुआ। साईं बाबा प्रसन्नचित्त उठे और मस्जिद में गए। आज रोहिल्ला की चित्तवृत्ति लड़ाकू थी और बाद में मुझे पता चला कि उसने बूटया को पीटा भी। मैं बाबा पालेकर और श्रीमान दीक्षित के साथ मस्जिद में गया। साईं बाबा रोहिल्ला और बूटया को शाँत करने की लोशिश कर रहे थे। जब वे अपने स्थान पर बैठे तब दीक्षित मेरे अमरावती लौटने की अनुमति माँगने कि लिए आगे बढ़े और वह मिली भी। अतः मैं वापिस लौटा और अपनी पत्नि को मेरे प्रस्थान की तैयारी करने को कहा। वह भीष्म और बन्दु के साथ कुछ और दिन शिरडी में रुकेंगी। मैंने पँचदशी की सँगत की और उसका पहला अध्याय पूर्ण किया। उसके पश्चात मैंने दोपहर की आरती में हिस्सा लिया जो कि हमेशा की तरह सम्पन्न हुई। श्रीमान चाँदोरकर उसके पूर्व आ गए थे अतः उन्होंने स्वाभाविक रूप से उसमें हिस्सा लिया।
मैंने अपना भोजन दीक्षित, चाँदोरकर और अन्य लोगों के साथ किया। भोजन के बाद मैं गया और गाँव के द्वार के पास साईं साहेब से मिला। उनकी आज्ञा पर हम दौड़े और ऊदी लाए और उनके हाथ से वह ली। उन्होंने हमें "अल्लाह भला करेगा" कह कर आशीर्वाद दिया और एक दम से चलने को कहा। अतः मैंने जल्दी से भाटे, जोशी, दादा केलकर, श्रीमान चाँदोरकर, उपासनी, दुर्गाभाऊ, को अलविदा कहा। श्रीमति कौजल्गी और बापू साहेब ने मुझे रोका। बालाराम और युवक दीक्षित साथ ही रामचँद्र भी वहाँ थे। भाई और केशव मिल नहीं पाए।
हम, अर्थात मैं और पालेकर ताँगे से चले और लगभग ४ बजे या उसके हुछ देर बाद कोपरगाँव पहुँचे और शाम ७ बजे तक प्लेटफार्म पर बैठे। शिरडी के कई आगन्तुक दिखाई दिए, जैसे कि नवलकर और डा॰ उजिन्की, और हमने बैठ कर बात की। हम उस रेलगाड़ी से निकले जो शाम ७ बजे निकलती है, और मनमाड पहुँचे। बहुत से यात्री साथ वाले प्लेटफार्म पर इँतज़ार कर रहे थे। मैं स्वयँ रेल में चढ़ा और पालेकर को टिकट लाने के लिए कहा। इसी बीच गाड़ी चल पड़ी और मैंने पाया कि वह चढ़ नहीं पाए। उस डिब्बे में टिकट परीक्षक था। मैंने उसे सब बताया। उसने सुझाव दिया कि मैं भुसावल जाऊँ और वहाँ पालेकर का इँतज़ार करूँ। मैंने वैसा ही किया। मैं अब इँतज़ार कर रहा था और मेरे पास ना तो टिकट था और ना ही एक पैसा ही। टिकट निरीक्षक भला आदमी था लेकिन वो जलगाँव उतर गया।
मैं श्री देवले से मिला जो यहाँ टिकट क्लेकटर हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि मैं या तो प्लेटफार्म पर इँतज़ार कर सकता हूँ या फिर गाड़ी में जो कि नागपुर जाने के लिए खड़ी थी। मैंने गाड़ी में इँतज़ार करने का निश्चय किया।
जय साईं राम
१५ मार्च, शुक्रवार, १९१२-
शिरडी से भुसावल-
मैं प्रातः जल्दी उठा, प्रार्थना की और काँकड़ आरती में सम्मिलित हुआ। साईं बाबा प्रसन्नचित्त उठे और मस्जिद में गए। आज रोहिल्ला की चित्तवृत्ति लड़ाकू थी और बाद में मुझे पता चला कि उसने बूटया को पीटा भी। मैं बाबा पालेकर और श्रीमान दीक्षित के साथ मस्जिद में गया। साईं बाबा रोहिल्ला और बूटया को शाँत करने की लोशिश कर रहे थे। जब वे अपने स्थान पर बैठे तब दीक्षित मेरे अमरावती लौटने की अनुमति माँगने कि लिए आगे बढ़े और वह मिली भी। अतः मैं वापिस लौटा और अपनी पत्नि को मेरे प्रस्थान की तैयारी करने को कहा। वह भीष्म और बन्दु के साथ कुछ और दिन शिरडी में रुकेंगी। मैंने पँचदशी की सँगत की और उसका पहला अध्याय पूर्ण किया। उसके पश्चात मैंने दोपहर की आरती में हिस्सा लिया जो कि हमेशा की तरह सम्पन्न हुई। श्रीमान चाँदोरकर उसके पूर्व आ गए थे अतः उन्होंने स्वाभाविक रूप से उसमें हिस्सा लिया।
मैंने अपना भोजन दीक्षित, चाँदोरकर और अन्य लोगों के साथ किया। भोजन के बाद मैं गया और गाँव के द्वार के पास साईं साहेब से मिला। उनकी आज्ञा पर हम दौड़े और ऊदी लाए और उनके हाथ से वह ली। उन्होंने हमें "अल्लाह भला करेगा" कह कर आशीर्वाद दिया और एक दम से चलने को कहा। अतः मैंने जल्दी से भाटे, जोशी, दादा केलकर, श्रीमान चाँदोरकर, उपासनी, दुर्गाभाऊ, को अलविदा कहा। श्रीमति कौजल्गी और बापू साहेब ने मुझे रोका। बालाराम और युवक दीक्षित साथ ही रामचँद्र भी वहाँ थे। भाई और केशव मिल नहीं पाए।
हम, अर्थात मैं और पालेकर ताँगे से चले और लगभग ४ बजे या उसके हुछ देर बाद कोपरगाँव पहुँचे और शाम ७ बजे तक प्लेटफार्म पर बैठे। शिरडी के कई आगन्तुक दिखाई दिए, जैसे कि नवलकर और डा॰ उजिन्की, और हमने बैठ कर बात की। हम उस रेलगाड़ी से निकले जो शाम ७ बजे निकलती है, और मनमाड पहुँचे। बहुत से यात्री साथ वाले प्लेटफार्म पर इँतज़ार कर रहे थे। मैं स्वयँ रेल में चढ़ा और पालेकर को टिकट लाने के लिए कहा। इसी बीच गाड़ी चल पड़ी और मैंने पाया कि वह चढ़ नहीं पाए। उस डिब्बे में टिकट परीक्षक था। मैंने उसे सब बताया। उसने सुझाव दिया कि मैं भुसावल जाऊँ और वहाँ पालेकर का इँतज़ार करूँ। मैंने वैसा ही किया। मैं अब इँतज़ार कर रहा था और मेरे पास ना तो टिकट था और ना ही एक पैसा ही। टिकट निरीक्षक भला आदमी था लेकिन वो जलगाँव उतर गया।
मैं श्री देवले से मिला जो यहाँ टिकट क्लेकटर हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि मैं या तो प्लेटफार्म पर इँतज़ार कर सकता हूँ या फिर गाड़ी में जो कि नागपुर जाने के लिए खड़ी थी। मैंने गाड़ी में इँतज़ार करने का निश्चय किया।
जय साईं राम