ॐ साईं राम
८ मार्च, शुक्रवार, १९१२-
प्रातः भीष्म और बन्दु जल्दी उठे और सँगीतमय प्रार्थना की। यह बहुत सहायक था। मैंने प्रार्थना की और उसके बाद हमने पँचदशी की सँगत की। हमने साईं महाराज के बाहर जाते हुए दर्शन किए और फिर मैं मस्जिद में गया। साईं महाराज ने अत्यँत कृपा पूर्वक मुझे मेरे नाम से पुकारा, और जैसे ही मैं बैठा, उन्होंने अपनी चार भाईयों की गाथा सुनाई। उन्होंने कहा कि वह बहुत छोटे थे और बहुत बुद्धिमान थे। वह अपने घर में खेला करते थे, जो कि बहुत बडा था, और नज़दीक के आशरखाने में भी। उसके पास ही एक बहुत बूढा आदमी बैठा करता था जो कि ना तो मस्जिद ही जाता था और ना ही आशरखाने में ही, और कहता था कि जहाँ वह लेटता है वह स्थान उसका है। साईं बाबा के सँबंधी नहीं चाहते थे कि वे आशरखाने में जाऐं और ना ही वहाँ जो गतिविधियाँ चलती थीं उनका समर्थन ही करते थे। वह वृद्ध व्यक्ति साईं बाबा की माता के पिता निकले और साईं बाबा उनके लिए रोटी और साथ में कुछ खाने के लिए ले जाते थे।
वह वृद्ध कुष्ठरोगी थे, उनकी हाथ पैर की अँगुलियाँ गल चुकी थीं और दिन प्रतिदिन और भी खराब होती जा रही थीं। यहाँ तक कि एक दिन उन्होंने खाना खाने से भी मना कर दिया और वह मर गए। साईं बाबा उनके पास खेल रहे थे पर उन्हें सँदेह ही नहीं हुआ कि मृत्यु इतनी नज़दीक थी। वे अपनी माँ से उसके बारे में बात करते रहे, जो कि अपने पिता को देखने चली गई। जब साईं बाबा गए तो उन्होंने देखा कि वृद्ध जा चुके थे और उनका शरीर चावलों में बदल गया था। किसी ने भी वृद्ध के वस्त्रों की जिम्मेदारी नहीं ली। बाद में चावल गायब हो गए, और वृद्ध व्यक्ति का पुनर्जन्म हुआ, परन्तु उनका सम्पर्क "मँग" लोगों से था। साईं बाबा ने उसे भोजन दिया, और वृद्ध का तीसरी बार कोण्डा जी के पुत्र के रूप में जन्म हुआ। वह बालक साईं बाबा के साथ खेलता था और कुछ माह पूर्व वह मर गया।
दोपहर की आरती के समय साईं बाबा मेरे निकट आए और मेरी बाईं बाजू को छुआ, और अपना हाथ कमर की ऊँचाई तक उठाया जैसे कि हम एक युवक को दर्शाने के लिए करते हैं। दूसरे हाथ से उन्होंने वैसा इशारा किया जैसा कि हम पास से निकलते हुए व्यक्ति को दर्शाने के लिए करते हैं। उन्होंने अपनी आँखों से एक इशारा किया। मैं इस सम्पूर्ण बात को नहीं समझ पाया और पूरा दिन व्याकुल रहा।
दोपहर को हमने अपनी पँचदशी की सँगत की, नाट्यदीप समाप्त किया और ब्रहमानन्द की शुरूआत की। हमने साईं बाबा के उनकी सैर के समय दर्शन किए और वाड़ा आरती के बाद शेज आरती में सम्मिलित हुए। रात्रि में भीष्म ने भागवत समाप्त की और दसबोध का पाठ किया। बाला साहेब भाटे भी उसमें सम्मिलित हुए।
जय साईं राम
८ मार्च, शुक्रवार, १९१२-
प्रातः भीष्म और बन्दु जल्दी उठे और सँगीतमय प्रार्थना की। यह बहुत सहायक था। मैंने प्रार्थना की और उसके बाद हमने पँचदशी की सँगत की। हमने साईं महाराज के बाहर जाते हुए दर्शन किए और फिर मैं मस्जिद में गया। साईं महाराज ने अत्यँत कृपा पूर्वक मुझे मेरे नाम से पुकारा, और जैसे ही मैं बैठा, उन्होंने अपनी चार भाईयों की गाथा सुनाई। उन्होंने कहा कि वह बहुत छोटे थे और बहुत बुद्धिमान थे। वह अपने घर में खेला करते थे, जो कि बहुत बडा था, और नज़दीक के आशरखाने में भी। उसके पास ही एक बहुत बूढा आदमी बैठा करता था जो कि ना तो मस्जिद ही जाता था और ना ही आशरखाने में ही, और कहता था कि जहाँ वह लेटता है वह स्थान उसका है। साईं बाबा के सँबंधी नहीं चाहते थे कि वे आशरखाने में जाऐं और ना ही वहाँ जो गतिविधियाँ चलती थीं उनका समर्थन ही करते थे। वह वृद्ध व्यक्ति साईं बाबा की माता के पिता निकले और साईं बाबा उनके लिए रोटी और साथ में कुछ खाने के लिए ले जाते थे।
वह वृद्ध कुष्ठरोगी थे, उनकी हाथ पैर की अँगुलियाँ गल चुकी थीं और दिन प्रतिदिन और भी खराब होती जा रही थीं। यहाँ तक कि एक दिन उन्होंने खाना खाने से भी मना कर दिया और वह मर गए। साईं बाबा उनके पास खेल रहे थे पर उन्हें सँदेह ही नहीं हुआ कि मृत्यु इतनी नज़दीक थी। वे अपनी माँ से उसके बारे में बात करते रहे, जो कि अपने पिता को देखने चली गई। जब साईं बाबा गए तो उन्होंने देखा कि वृद्ध जा चुके थे और उनका शरीर चावलों में बदल गया था। किसी ने भी वृद्ध के वस्त्रों की जिम्मेदारी नहीं ली। बाद में चावल गायब हो गए, और वृद्ध व्यक्ति का पुनर्जन्म हुआ, परन्तु उनका सम्पर्क "मँग" लोगों से था। साईं बाबा ने उसे भोजन दिया, और वृद्ध का तीसरी बार कोण्डा जी के पुत्र के रूप में जन्म हुआ। वह बालक साईं बाबा के साथ खेलता था और कुछ माह पूर्व वह मर गया।
दोपहर की आरती के समय साईं बाबा मेरे निकट आए और मेरी बाईं बाजू को छुआ, और अपना हाथ कमर की ऊँचाई तक उठाया जैसे कि हम एक युवक को दर्शाने के लिए करते हैं। दूसरे हाथ से उन्होंने वैसा इशारा किया जैसा कि हम पास से निकलते हुए व्यक्ति को दर्शाने के लिए करते हैं। उन्होंने अपनी आँखों से एक इशारा किया। मैं इस सम्पूर्ण बात को नहीं समझ पाया और पूरा दिन व्याकुल रहा।
दोपहर को हमने अपनी पँचदशी की सँगत की, नाट्यदीप समाप्त किया और ब्रहमानन्द की शुरूआत की। हमने साईं बाबा के उनकी सैर के समय दर्शन किए और वाड़ा आरती के बाद शेज आरती में सम्मिलित हुए। रात्रि में भीष्म ने भागवत समाप्त की और दसबोध का पाठ किया। बाला साहेब भाटे भी उसमें सम्मिलित हुए।
जय साईं राम