ॐ साईं राम
२९ दिसँबर, बुधवार, १९१५,
शिरडी-
मैं प्रातः लगभग ३॰३० बजे मनमाड में जागा और कोपरगाँव जाने वाली गाड़ी में बैठा। मैंने गाड़ी में ही प्रार्थना की और दिन चढ़ने से पहले ही कोपरगाँव पहुँचा और वहाँ डा॰ देशपाँडे से मिला, जो कि कोपरगाँव के औषधालय में प्रभारी हैं। मैं उन्हें पहले से नहीं जानता था। मैंने उन्हें और उनके पुत्र को औषधालय तक अपनी सवारी में जगह दी और उन्होंने मुझे गर्म चाय की प्याली और कुछ खाने को दिया। वहाँ गहरा कोहरा था और मुझे उसमें गाड़ी चला कर कोपरगाँव से पहुँचने में सुबह के ९ बज गए। मेरी पत्नि और बच्चे वहाँ थे।
मैं माधवराव देशपाँडे के साथ मस्जिद में गया और साईं महाराज को प्रणाम किया। उनका स्वास्थय बहुत खराब था। उन्हें खाँसी से बहुत तकलीफ हो रही थी। मैंने पूजा के समय छत्र पकड़ा। यहाँ दिन बड़ी सरलता से कट जाता है। जी॰एम॰बूटी उर्फ बापू साहेब अपने स्वामी गुरुष्टा के साथ यहाँ हैं। काका साहेब दीक्षित, बापू साहेब जोग, बाला साहेब भाटे और सभी पुराने मित्र यहाँ हैं। और मैं बहुत ही ज़्यादा खुश हूँ।
जय साईं राम
२९ दिसँबर, बुधवार, १९१५,
शिरडी-
मैं प्रातः लगभग ३॰३० बजे मनमाड में जागा और कोपरगाँव जाने वाली गाड़ी में बैठा। मैंने गाड़ी में ही प्रार्थना की और दिन चढ़ने से पहले ही कोपरगाँव पहुँचा और वहाँ डा॰ देशपाँडे से मिला, जो कि कोपरगाँव के औषधालय में प्रभारी हैं। मैं उन्हें पहले से नहीं जानता था। मैंने उन्हें और उनके पुत्र को औषधालय तक अपनी सवारी में जगह दी और उन्होंने मुझे गर्म चाय की प्याली और कुछ खाने को दिया। वहाँ गहरा कोहरा था और मुझे उसमें गाड़ी चला कर कोपरगाँव से पहुँचने में सुबह के ९ बज गए। मेरी पत्नि और बच्चे वहाँ थे।
मैं माधवराव देशपाँडे के साथ मस्जिद में गया और साईं महाराज को प्रणाम किया। उनका स्वास्थय बहुत खराब था। उन्हें खाँसी से बहुत तकलीफ हो रही थी। मैंने पूजा के समय छत्र पकड़ा। यहाँ दिन बड़ी सरलता से कट जाता है। जी॰एम॰बूटी उर्फ बापू साहेब अपने स्वामी गुरुष्टा के साथ यहाँ हैं। काका साहेब दीक्षित, बापू साहेब जोग, बाला साहेब भाटे और सभी पुराने मित्र यहाँ हैं। और मैं बहुत ही ज़्यादा खुश हूँ।
जय साईं राम