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Thursday, June 28, 2012


ॐ साईं राम

४ जुलाई, शुक्रवार, १९१३-
अमरावती-


प्रातः मैं रोज़ाना की तरह उठा , प्रार्थना की और कुछ पत्र लिखे। गोडबोले आए। भोजन के बाद मैं गोडबोले के साथ न्यायलय गया और श्रीमान मोरिस के सम्मुख प्रस्तुत हुआ। वहाँ मेरी केवल एक याचिका थी और वह जल्दी ही खत्म हो गई क्योंकि वह शुद्धतः गवाही पर निर्भर थी। देशपाँडे दूसरी ओर से उपस्थित हुए। उसके पश्चात मैंने कुछ कागज़ों पर हस्ताक्षर किए और घर वापिस आया तथा पढ़ने लगा। हैदराबाद के शीरालाल मोतीलाल के गुरूष्टा मुझसे मिलने आए और वार्तालाप किया। जब वह बैठे ही थे कि असनारे आए और मुझे राजा अविकशेत की कहानी पढ़ कर सुनाई। वह एलिचपुर में होने वाले गणपति उत्सव में उसका नाट्य रुपाँतरण प्रस्तुत करना चाहते हैं। वह एक बहुत सुन्दर कहानी है और बहुत रोचक रहेगी। हम बैठ कर उसके बारे में बात करते रहे। दुर्रानी आए पर शीघ्र ही चले गए। बेरार शिक्षा समिति की प्रबँध समिति ने नियम में सँशोधन किया। उन्हें सामान्य सभा के समक्ष प्रस्तुत और उसके द्वारा पास कर दिया जाना चाहिए। 

मैं शाम की हवा खाने मिरज़ा याद अली बेग के साथ गया। बाद में अप्पा साहेब वटावे आए और हमने बैठ कर बात की। आज शुक्रवार होने के कारण कोई कक्षा नहीं थी। त्रिम्बक राव, जो जब मैं शिरडी में था, वहाँ साईं महाराज की सेवा किया करते थे, वह दोपहर को आए। उन्होंने कहा कि वह जगन्नाथ जा रहे हैं, उन्होंने अपना पहनावा पूरी तरह से बदल दिया है। अब वह वैसी लम्बी कमीज़ पहनते हैं जैसी साईं महाराज पहनते हैं और उसे पहने हुए ही भोजन करते हैं1


जय साईं राम