ॐ साईं राम
हमने पहले ही देखा कि दादा साहेब ने इँग्लैंड से आने के कुछ ही महीने के बाद शिरडी की पहली यात्रा की। यह यात्रा केवल एक सप्ताह की थी। जो भी हो, देश की राजनीतिक परिस्थिति कुछ ही महीनों में बहुत बिगड़ गई थी और सरकार ने राष्ट्रीय आँदोलन को दबाने के लिए दमन की नीति को तेज़ कर दिया था। इसका एक उदाहरण ७ अक्टूबर १९११ को बिपिन चन्द्र की गिरफ्तारी थी। वह इँग्लैंड से बम्बई के स्टीमर में यात्रा कर रहे थे और जैसे ही स्टीमर बम्बई पहुँचा वैसे ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और विद्रोह के आरोप में उन पर मुकद्दमा चलाया गया।
क्योंकि खापर्डे लोकमान्य की रिहाई के लिए आँदोलन कर रहे थे, वह सरकार की काली सूची में पहले से ही थे, और उनकी गिरफ्तारी अवश्यम्भावी थी। असल में खापर्डे के सबसे बड़े पुत्र अगर सँभव हो तो सरकार की मँशा के बारे में जानकारी प्राप्त करने के उद्देश्य से शिमला गए थे।
यह सब साईं बाबा ने अपनी अतीन्द्रीय दर्शी दृष्टि से देख ही लिया था क्योंकि इस विश्व में ऐसा कुछ भी नहीं है जो वे ना जानते हों या उनके ध्यान में ना आया हो। असल में साईं बाबा ने अपनी साँकेतिक भाषा में उन्हें इसका इशारा भी दिया था, जिसका पता २९ दिसँबर १९११ की इस प्रविष्टि से चलता है-
आगे जारी रहेगा॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰
जय साईं राम
हमने पहले ही देखा कि दादा साहेब ने इँग्लैंड से आने के कुछ ही महीने के बाद शिरडी की पहली यात्रा की। यह यात्रा केवल एक सप्ताह की थी। जो भी हो, देश की राजनीतिक परिस्थिति कुछ ही महीनों में बहुत बिगड़ गई थी और सरकार ने राष्ट्रीय आँदोलन को दबाने के लिए दमन की नीति को तेज़ कर दिया था। इसका एक उदाहरण ७ अक्टूबर १९११ को बिपिन चन्द्र की गिरफ्तारी थी। वह इँग्लैंड से बम्बई के स्टीमर में यात्रा कर रहे थे और जैसे ही स्टीमर बम्बई पहुँचा वैसे ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और विद्रोह के आरोप में उन पर मुकद्दमा चलाया गया।
क्योंकि खापर्डे लोकमान्य की रिहाई के लिए आँदोलन कर रहे थे, वह सरकार की काली सूची में पहले से ही थे, और उनकी गिरफ्तारी अवश्यम्भावी थी। असल में खापर्डे के सबसे बड़े पुत्र अगर सँभव हो तो सरकार की मँशा के बारे में जानकारी प्राप्त करने के उद्देश्य से शिमला गए थे।
यह सब साईं बाबा ने अपनी अतीन्द्रीय दर्शी दृष्टि से देख ही लिया था क्योंकि इस विश्व में ऐसा कुछ भी नहीं है जो वे ना जानते हों या उनके ध्यान में ना आया हो। असल में साईं बाबा ने अपनी साँकेतिक भाषा में उन्हें इसका इशारा भी दिया था, जिसका पता २९ दिसँबर १९११ की इस प्रविष्टि से चलता है-
आगे जारी रहेगा॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰
जय साईं राम