ॐ साईं राम
१८९७ में जब भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस का अधिवेशन अमरावती में, तब तक वह राष्ट्रीय जीवन के एक महत्वपूर्ण प्रसिद्ध व्यक्ति बन चुके थे और स्वागत समिति के अध्यक्ष भी चुने जा चुके थे। अब हम समय में थोड़ा पीछे जाएँगे और देखेंगे कि दादा साहेब ने कब और कैसे अपने दैनिक ब्यौरे की डायरी रखना शुरू किया और इस प्रकार की उनकी कितनी डायरियाँ उपलब्ध हैं।
दादा साहेब की १८७९ की एक छोटी डायरी मिली है। हालाँकि उसमें कई महत्वपूर्ण प्रविष्टियाँ हैं, पर उसके कई पन्ने खाली हैं और कुछ पन्नों में केवल छुट पुट वाक्य हैं। तो भी १८९४ से ले के १९३८ तक दादा साहेब के अपने हाथ से लिखी ४५ डायरियाँ उपलब्ध हैं। अतः कुल मिला कर राष्ट्रीय पुरातत्व विभाग में सभी ४६ डायरियाँ जो कि विद्यमान हैं, रखी गई हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि १८७९ से पूर्व या १८८० से १८९३ के बीच उनके द्वारा कोई डायरी नहीं रखी गई। १८९४ से १९३८ के बीच की डायरियों में १९३८ की एक "राष्ट्रीय डायरी " भारत में निर्मित थी, चार "कोलिन्स डायरियाँ", और बाकी "लेट्स की डायरियाँ", सब विदेश में निर्मित थी। प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान लेट्स की डायरियाँ उपलब्ध नहीं थीं, अतः अन्य प्रकाशित डायरियाँ काम में लाई जाती थी। सभी डायरियाँ १२॰५" लम्बी और ८" इन्च चौड़ी थीं, उनमें हर दिन के लिए एक पन्ना था और उनका वज़न ४ पाउन्ड था और २६ तोले था।
आगे जारी रहेगा॰॰॰॰॰॰॰॰॰
जय साईं राम
१८९७ में जब भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस का अधिवेशन अमरावती में, तब तक वह राष्ट्रीय जीवन के एक महत्वपूर्ण प्रसिद्ध व्यक्ति बन चुके थे और स्वागत समिति के अध्यक्ष भी चुने जा चुके थे। अब हम समय में थोड़ा पीछे जाएँगे और देखेंगे कि दादा साहेब ने कब और कैसे अपने दैनिक ब्यौरे की डायरी रखना शुरू किया और इस प्रकार की उनकी कितनी डायरियाँ उपलब्ध हैं।
दादा साहेब की १८७९ की एक छोटी डायरी मिली है। हालाँकि उसमें कई महत्वपूर्ण प्रविष्टियाँ हैं, पर उसके कई पन्ने खाली हैं और कुछ पन्नों में केवल छुट पुट वाक्य हैं। तो भी १८९४ से ले के १९३८ तक दादा साहेब के अपने हाथ से लिखी ४५ डायरियाँ उपलब्ध हैं। अतः कुल मिला कर राष्ट्रीय पुरातत्व विभाग में सभी ४६ डायरियाँ जो कि विद्यमान हैं, रखी गई हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि १८७९ से पूर्व या १८८० से १८९३ के बीच उनके द्वारा कोई डायरी नहीं रखी गई। १८९४ से १९३८ के बीच की डायरियों में १९३८ की एक "राष्ट्रीय डायरी " भारत में निर्मित थी, चार "कोलिन्स डायरियाँ", और बाकी "लेट्स की डायरियाँ", सब विदेश में निर्मित थी। प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान लेट्स की डायरियाँ उपलब्ध नहीं थीं, अतः अन्य प्रकाशित डायरियाँ काम में लाई जाती थी। सभी डायरियाँ १२॰५" लम्बी और ८" इन्च चौड़ी थीं, उनमें हर दिन के लिए एक पन्ना था और उनका वज़न ४ पाउन्ड था और २६ तोले था।
आगे जारी रहेगा॰॰॰॰॰॰॰॰॰
जय साईं राम