ॐ साईं राम
प्रथम आगमन- ५ दिसँबर १९१० - १२ दिसँबर, १९१०
द्वितीय आगमन- ६ दिसँबर १९११ - १५ मार्च, १९१२
तृतीय आगमन- २९ दिसँबर १९१५- ३१ दिसँबर, १९१५
चतुर्थ आगमन- १९ मई, १९१७ लोकमान्य तिलक के साथ शिरडी यात्रा
पाँचवा आगमन- मार्च १९१८ में अनिर्दिष्ट दिनों के लिए
आइए अब हम देखते हैं कि प्रत्येक यात्रा का पृथक विवरण जो कि दादा साहेब की जीवनी में दिया गया है, उसमें १९२४-१९२५ में श्री साईं लीला में प्रकाशित जानकारी से अलग क्या जानकारी दी गई है।
दिसँबर १९१० की प्रथम यात्रा-
दादा साहेब खापर्डे पुणे से बम्बई अपने सबसे बड़े बेटे बालकृष्ण के साथ आए और ५ दिसँबर को शिरडी पहुँचे। वह वहाँ ७ दिन तक ठहरे और १२ दिसँबर को साईं बाबा से अनुमति मिलने के बाद वहाँ से चले और १३ दिसँबर को अकोला पहुँचे। साधारणतः वह उस समय प्रथम श्रेणी में यात्रा किया करते थे जब रेल यात्रा में चार श्रेणियाँ हुआ करती थीं। तो भी इस बार पर्याप्त धन ना होने के कारण उन्होंने द्वितीय श्रेणी में यात्रा की और १९ दिसँबर को अकोला से होते हुए अमरावती पहुँचे। यह लिखा गया है कि उन्हें अमरावती रेलवे स्टेशन से पैदल अपने निवास स्थान तक जाना पड़ा। यह अति आश्चर्यजनक है कि दादा साहेब जैसे रूतबे के व्यक्ति के पास इतने पैसे नहीं थे कि वह अपने आवास पर जाने के लिए कोई सवारी ले पाते। दादा साहेब की वार्षिक आय वकालत के पेशे से एक समय में ९०,००० से ९५,००० रूपये थी, वह भी उस समय जब आयकर का कोई कानून नहीं था और निर्वाह खर्च बहुत ही सस्ता था। तो भी ऊपर लिखित हालात उत्पन्न हुए क्योंकि दादा साहेब का रहन सहन उनके साधनों से अधिक था।
एक समय तो उनके पास आस्ट्रेलियन नस्ल के ७ घोड़े थे। दो गाड़ियाँ, जिनमें एक राजकीय और दूसरी सामान्य थी, तथा उनकी देखरेख के लिए कर्मचारी थे। वह इस हद तक दरियादिल थे कि कई परिवारों को शरण दी हुई थी। उनका घर हमेशा खुला रहता था और हमेशा अतिथियों से भरा रहता था जिनके आराम और मनोरँजन, नाच प्रीतिभोज सहित, के लिए वह खुले दिल से खर्च करते थे। अब पाठकगण समझ सकते हैं कि उन्हें क्यों रेलवे स्टेशन से घर तक का रास्ता चल कर तय करना पड़ा। श्री साईं लीला में दी गई उनकी यात्रा का विवरण, उनकी जीवनी में दिए गए विवरण की तुलना में अधूरा प्रतीत होता है।
आगे जारी रहेगा॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰
जय साईं राम
प्रथम आगमन- ५ दिसँबर १९१० - १२ दिसँबर, १९१०
द्वितीय आगमन- ६ दिसँबर १९११ - १५ मार्च, १९१२
तृतीय आगमन- २९ दिसँबर १९१५- ३१ दिसँबर, १९१५
चतुर्थ आगमन- १९ मई, १९१७ लोकमान्य तिलक के साथ शिरडी यात्रा
पाँचवा आगमन- मार्च १९१८ में अनिर्दिष्ट दिनों के लिए
आइए अब हम देखते हैं कि प्रत्येक यात्रा का पृथक विवरण जो कि दादा साहेब की जीवनी में दिया गया है, उसमें १९२४-१९२५ में श्री साईं लीला में प्रकाशित जानकारी से अलग क्या जानकारी दी गई है।
दिसँबर १९१० की प्रथम यात्रा-
दादा साहेब खापर्डे पुणे से बम्बई अपने सबसे बड़े बेटे बालकृष्ण के साथ आए और ५ दिसँबर को शिरडी पहुँचे। वह वहाँ ७ दिन तक ठहरे और १२ दिसँबर को साईं बाबा से अनुमति मिलने के बाद वहाँ से चले और १३ दिसँबर को अकोला पहुँचे। साधारणतः वह उस समय प्रथम श्रेणी में यात्रा किया करते थे जब रेल यात्रा में चार श्रेणियाँ हुआ करती थीं। तो भी इस बार पर्याप्त धन ना होने के कारण उन्होंने द्वितीय श्रेणी में यात्रा की और १९ दिसँबर को अकोला से होते हुए अमरावती पहुँचे। यह लिखा गया है कि उन्हें अमरावती रेलवे स्टेशन से पैदल अपने निवास स्थान तक जाना पड़ा। यह अति आश्चर्यजनक है कि दादा साहेब जैसे रूतबे के व्यक्ति के पास इतने पैसे नहीं थे कि वह अपने आवास पर जाने के लिए कोई सवारी ले पाते। दादा साहेब की वार्षिक आय वकालत के पेशे से एक समय में ९०,००० से ९५,००० रूपये थी, वह भी उस समय जब आयकर का कोई कानून नहीं था और निर्वाह खर्च बहुत ही सस्ता था। तो भी ऊपर लिखित हालात उत्पन्न हुए क्योंकि दादा साहेब का रहन सहन उनके साधनों से अधिक था।
एक समय तो उनके पास आस्ट्रेलियन नस्ल के ७ घोड़े थे। दो गाड़ियाँ, जिनमें एक राजकीय और दूसरी सामान्य थी, तथा उनकी देखरेख के लिए कर्मचारी थे। वह इस हद तक दरियादिल थे कि कई परिवारों को शरण दी हुई थी। उनका घर हमेशा खुला रहता था और हमेशा अतिथियों से भरा रहता था जिनके आराम और मनोरँजन, नाच प्रीतिभोज सहित, के लिए वह खुले दिल से खर्च करते थे। अब पाठकगण समझ सकते हैं कि उन्हें क्यों रेलवे स्टेशन से घर तक का रास्ता चल कर तय करना पड़ा। श्री साईं लीला में दी गई उनकी यात्रा का विवरण, उनकी जीवनी में दिए गए विवरण की तुलना में अधूरा प्रतीत होता है।
आगे जारी रहेगा॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰
जय साईं राम