ॐ साईं राम
मार्च १९१८ की पाँचवी यात्रा-
दादा साहेब की इस अनियत शिरडी यात्रा की कोई तिथियाँ मराठी में रचित जीवनी में नहीं मिलती। तो भी अनिर्दिष्ट दिनों की इस शिरडी यात्रा का एक उद्देश्य था। दादा साहेब को होम रूल की माँग के लिए काँग्रेस शिष्टमँडल के साथ इँग्लैंड जाना था और इसी सिलसिले में वह दिल्ली आए थे। दिल्ली छोड़ने के पूर्व उन्हें सर सँकरन नायर ने बुलाया, जिन्होंने १८९७ में अमरावती में हुए काँग्रेस के अधिवेशन की अध्यक्षता की थी, जब दादा साहेब खापर्डे स्वागत समिति के प्रमुख थे। १९१८ के आसपास सँकरन नायर भारत के वायसराय की कार्यकारी परिषद के सदस्य बने थे और उन्हें अपने द्वारा उठाए गए कदम के सही होने को ले कर कुछ सँशय था। अतः उन्होंने खापर्डे से अनुरोध किया कि वह उनके इस कदम के बारे में साईं महाराज से इस विषय में राय और परामर्श लें। जैसा कि जीवनी में दी गई इस बेतारीखी प्रविष्टि से पता चलता है-
" सँकरन नायर को देखा। वह मुझे देख कर बहुत खुश हुए और हम बहुत देर तक बैठ कर बातें करते रहे। उन्होंने मुझे अपनी तरफ से शिरडी के साईं महाराज के सामने यह प्रश्न रखने को कहा - क्या उनके लिए नौकरी में बने रहना उचित होगा। क्या आध्यात्मिक रूप से वह गलत जा रहे हैं। यदि हाँ तो क्या साईं महाराज उन्हें सही मार्ग पर डालेंगे। मैंने उन्हें वचन दिया कि मैं साईं महाराज के समक्ष यह प्रश्न रखूँगा और उन्हें लिखूँगा कि साईं महाराज क्या कहते हैं।"
आगे जारी रहेगा॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰�� �॰
जय साईं राम
मार्च १९१८ की पाँचवी यात्रा-
दादा साहेब की इस अनियत शिरडी यात्रा की कोई तिथियाँ मराठी में रचित जीवनी में नहीं मिलती। तो भी अनिर्दिष्ट दिनों की इस शिरडी यात्रा का एक उद्देश्य था। दादा साहेब को होम रूल की माँग के लिए काँग्रेस शिष्टमँडल के साथ इँग्लैंड जाना था और इसी सिलसिले में वह दिल्ली आए थे। दिल्ली छोड़ने के पूर्व उन्हें सर सँकरन नायर ने बुलाया, जिन्होंने १८९७ में अमरावती में हुए काँग्रेस के अधिवेशन की अध्यक्षता की थी, जब दादा साहेब खापर्डे स्वागत समिति के प्रमुख थे। १९१८ के आसपास सँकरन नायर भारत के वायसराय की कार्यकारी परिषद के सदस्य बने थे और उन्हें अपने द्वारा उठाए गए कदम के सही होने को ले कर कुछ सँशय था। अतः उन्होंने खापर्डे से अनुरोध किया कि वह उनके इस कदम के बारे में साईं महाराज से इस विषय में राय और परामर्श लें। जैसा कि जीवनी में दी गई इस बेतारीखी प्रविष्टि से पता चलता है-
" सँकरन नायर को देखा। वह मुझे देख कर बहुत खुश हुए और हम बहुत देर तक बैठ कर बातें करते रहे। उन्होंने मुझे अपनी तरफ से शिरडी के साईं महाराज के सामने यह प्रश्न रखने को कहा - क्या उनके लिए नौकरी में बने रहना उचित होगा। क्या आध्यात्मिक रूप से वह गलत जा रहे हैं। यदि हाँ तो क्या साईं महाराज उन्हें सही मार्ग पर डालेंगे। मैंने उन्हें वचन दिया कि मैं साईं महाराज के समक्ष यह प्रश्न रखूँगा और उन्हें लिखूँगा कि साईं महाराज क्या कहते हैं।"
आगे जारी रहेगा॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰�� �॰
जय साईं राम