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Thursday, June 28, 2012

ॐ साईं राम


१६ मार्च, रविवार, १९१२-


भुसावल- अमरावती-


कुली ने मुझे प्रातः ५ बजे उठाया और प्लेटफार्म पर पहुँचने पर मैंने बाबा पालेकर को वहाँ आते हुए देखा। उन्होंने कहा कि पिछली रात मेरी गाड़ी चले जाने के बाद वह मनमाड के स्टेशन मास्टर से मिले और उन्हें सारी स्थिति से अवगत कराया कि कैसे वह सब कोच के क्लर्क की असावधानी से हुआ। स्टेशन मास्टर एक समझदार व्यक्ति था अतः उसने कम्पनी के खर्चे पर सभी स्टेशनों- भुसावल, बदनेरा और अमरावत में बिना किसी तकलीफ के मुझे चले जाने देने के लिए तार कर दिया। श्रीमान देवले भी आए । मैं और बाबा पालेकर नागपुर यात्री गाड़ी से निकले। 


शेगावँ में मुझे श्रीमान गोविन्द राज के पुत्र बाबा मिले। वह एक उप रजिस्ट्रार हैं। मुझे यह सुन कर दुख हुआ कि श्रीमान गोविन्द राज स्वस्थ नहीं हैं। अकोला में वृद्ध श्रीमान महाजनी मेरे डिब्बे में चढ़े और अमरावती तक मेरे साथ सफर किया। पूरे रास्ते हम सामान्य विषयों पर बातें करते रहे। वह नैतिक और धार्मिक उपदेशों के विषय में किसी सभा में सम्मिलित होने जा रहे थे।


अमरावती में नारायण धमरकर और महादेव स्टेशन पर आए थे। घर पहुँचने पर मैं दुर्गे शास्त्री से मिला। वह बहुत कमज़ोर हैं और लगभग सूरदास हैं। उसके बाद मैंने स्नान किया और कुछ खाया भी। मैंने लेटने का प्रयास किया पर मुझे बहुत गर्मी लगी। अतः मैं दैनिक समाचार पत्र पढ़ने लगा और कुछ लिखा। 


करँदिकर, रघुनाथराव टीकेकर, असनारे, भाऊ दुरनी, काका तारुबे, श्रीराम खातरे, गोपालराव दोले, व॰के॰ काले और अन्य लोग दिन में और शाम को मुझसे मिलने आए और मैं बैठकर उनसे अपने शिरडी प्रवास,वहाँ की जीवन शैली और साईं साहेब की महानता के बारे में, जो कि लगातार मेरे मस्तिष्क में समाए हुए थे, बातें करता रहा। हम कुछ देर छत पर बैठे। मुझसे मिलने गोखले भी आए। मैं बहुत थक गया और मैं जल्दी आराम करूँगा।


जय साईं राम