ॐ साईं राम
१८ मार्च, सोमवार, १९१२-
अमरावती-
यहाँ शिरडी जैसा आध्यात्मिक वातावरण नहीं है और मैं अपने आप को अत्याधिक कष्ट में महसूस कर रहा हूँ बावजूद इसके कि हमसा मेरे साथ एक छत के नीचे हैं और उनका प्रभामँडल बहुत शक्तिशाली है। मैं वैसे ही उठना चाहता हूँ जैसे कि शिरडी में उठता था, पर नहीं उठ पाया और सूर्योदय से पूर्व मेरी प्रार्थना पूरी करने के लिए मुझे काफी मेहनत करनी पड़ी। उसके पश्चात मैंने आज की याचिका को देखा, जल्दी तैयार हुआ और कुछ खा कर न्यायलय गया। मैं श्री ब्राउन को उनके न्यायलय के पास मिला और एक मुकद्दमें मे मुझे इतना समय मिला कि मैं हमारा लिखित बयान दे सकूँ। फिर मैं श्री प्राइस के न्यायलय में गया और उन्हें एक सेशन के मुकद्दमें में व्यस्त पाया। वह याचिकाँए नहीं सुन सकते थे, अतः मेरा काम खत्म हो गया। मैं बार रूम में गया और और श्रीमान पालेकर को, जो कि मेरे साथ आए थे, वहाँ बैठा हुआ पाया।
मैंने उनके साथ बैठ कर बात की और उन्हें तीन रुपये दिए जो कि मेजर मोरिस को दिए जाने वाले सम्मानसूचक रात्रिभोज के लिए सचिव को देने थे। ताँबे, दारुले, और भिडे वहाँ आए और साथ ही श्री नारायण राव केतकर भी। ऊनके साथ बात करने के बाद मैं गोपालराव दोले और दारुले के साथ घर आया। दोले मेरे साथ ही सुबह न्यायलय गए थे। घर लौटने पर मैं हमसा और अन्य लोगों के साथ बात करने बैठा जो हमसा को देखने आए थे। उनकी तबियत कुछ ठिख नहीं लग रही थी। बाद में उन्हें ठीक लगा। फिर हम बाबा पालेकर के आवास पर गए जहाँ हमसा ने दूध और फल लिए।
तदन्तर हम रेलवे स्टेशन गए, वहाँ मैंने दिओलघाट के नवाब को , वृद्ध श्री महाजनी और अन्य लोगों को देखा। हमसा शाम की गाड़ी से पुरोहित के साथ मोरतुगापुर चले गए। मेरा पुत्र बाबा और कुछ अन्य बदूरा चले गए और मैं घर वापिस आ गया। मैं करँदिकर, वी॰क॰ काले, वामनराव जोशी, जयराम पाटिल और अन्य लोगों के साथ छत पर बैट कर बात करने लगा। बाद में मुझे व्ह॰ वी॰ जोशी का एक पत्र मिला जिसमें कहा गया था कि मुझे श्री मोरिस के प्रीतिभोज में सम्मिलित होने से मना किया गया था क्योंकि उसे श्री स्लाय और दूसरे पसँद नहीं करते। मैं परिस्थिति को समझ नहीं पाया। यह प्रीतिभोज बार और बेन्च की ओर से दिया जाना था और मुझे उसमें सम्मिलित होने का पूरा अधिकार था। इस बात से फर्क नहीं पड़ता था कि श्री स्लाय और अन्य उसे पसँद करें या नहीं। हम बैठ कर बहुत देर तक बात करते रहे।
जय साईं राम
१८ मार्च, सोमवार, १९१२-
अमरावती-
यहाँ शिरडी जैसा आध्यात्मिक वातावरण नहीं है और मैं अपने आप को अत्याधिक कष्ट में महसूस कर रहा हूँ बावजूद इसके कि हमसा मेरे साथ एक छत के नीचे हैं और उनका प्रभामँडल बहुत शक्तिशाली है। मैं वैसे ही उठना चाहता हूँ जैसे कि शिरडी में उठता था, पर नहीं उठ पाया और सूर्योदय से पूर्व मेरी प्रार्थना पूरी करने के लिए मुझे काफी मेहनत करनी पड़ी। उसके पश्चात मैंने आज की याचिका को देखा, जल्दी तैयार हुआ और कुछ खा कर न्यायलय गया। मैं श्री ब्राउन को उनके न्यायलय के पास मिला और एक मुकद्दमें मे मुझे इतना समय मिला कि मैं हमारा लिखित बयान दे सकूँ। फिर मैं श्री प्राइस के न्यायलय में गया और उन्हें एक सेशन के मुकद्दमें में व्यस्त पाया। वह याचिकाँए नहीं सुन सकते थे, अतः मेरा काम खत्म हो गया। मैं बार रूम में गया और और श्रीमान पालेकर को, जो कि मेरे साथ आए थे, वहाँ बैठा हुआ पाया।
मैंने उनके साथ बैठ कर बात की और उन्हें तीन रुपये दिए जो कि मेजर मोरिस को दिए जाने वाले सम्मानसूचक रात्रिभोज के लिए सचिव को देने थे। ताँबे, दारुले, और भिडे वहाँ आए और साथ ही श्री नारायण राव केतकर भी। ऊनके साथ बात करने के बाद मैं गोपालराव दोले और दारुले के साथ घर आया। दोले मेरे साथ ही सुबह न्यायलय गए थे। घर लौटने पर मैं हमसा और अन्य लोगों के साथ बात करने बैठा जो हमसा को देखने आए थे। उनकी तबियत कुछ ठिख नहीं लग रही थी। बाद में उन्हें ठीक लगा। फिर हम बाबा पालेकर के आवास पर गए जहाँ हमसा ने दूध और फल लिए।
तदन्तर हम रेलवे स्टेशन गए, वहाँ मैंने दिओलघाट के नवाब को , वृद्ध श्री महाजनी और अन्य लोगों को देखा। हमसा शाम की गाड़ी से पुरोहित के साथ मोरतुगापुर चले गए। मेरा पुत्र बाबा और कुछ अन्य बदूरा चले गए और मैं घर वापिस आ गया। मैं करँदिकर, वी॰क॰ काले, वामनराव जोशी, जयराम पाटिल और अन्य लोगों के साथ छत पर बैट कर बात करने लगा। बाद में मुझे व्ह॰ वी॰ जोशी का एक पत्र मिला जिसमें कहा गया था कि मुझे श्री मोरिस के प्रीतिभोज में सम्मिलित होने से मना किया गया था क्योंकि उसे श्री स्लाय और दूसरे पसँद नहीं करते। मैं परिस्थिति को समझ नहीं पाया। यह प्रीतिभोज बार और बेन्च की ओर से दिया जाना था और मुझे उसमें सम्मिलित होने का पूरा अधिकार था। इस बात से फर्क नहीं पड़ता था कि श्री स्लाय और अन्य उसे पसँद करें या नहीं। हम बैठ कर बहुत देर तक बात करते रहे।
जय साईं राम