ॐ साईं राम
पालेकर खापर्डे से भुसावल में मिले और दोनों ने नागपुर जाने वाली रेल से यात्रा की। खापर्डे १६ मार्च को अमरावती पहँचे। उनका हृदय तो शिरडी में ही रह गया था, जैसा कि उनकी १८ मार्च १९१२ को लिखी गई प्रविष्टि से पता चलता है॰॰॰॰॰॰॰
" यहाँ शिरडी जैसा आध्यात्मिक वातावरण नहीं है और मैं अपने आप को अत्याधिक कष्ट में महसूस कर रहा हूँ बावजूद इसके कि हमसा मेरे साथ एक छत के नीचे हैं और उनका प्रभामँडल बहुत शक्तिशाली है। मैं वैसे ही उठना चाहता हूँ जैसे कि शिरडी में उठता था, पर नहीं उठ पाया और सूर्योदय से पूर्व मेरी प्रार्थना पूरी करने के लिए मुझे काफी मेहनत करनी पड़ी। " #
# पाठकों की सुविधा के लिए और निरँतरता को बनाए रखने के लिए यह पँक्तियाँ पहले जोड़ कर लिख दी गई हैं।
आगे जारी रहेगा॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰
जय साईं राम
पालेकर खापर्डे से भुसावल में मिले और दोनों ने नागपुर जाने वाली रेल से यात्रा की। खापर्डे १६ मार्च को अमरावती पहँचे। उनका हृदय तो शिरडी में ही रह गया था, जैसा कि उनकी १८ मार्च १९१२ को लिखी गई प्रविष्टि से पता चलता है॰॰॰॰॰॰॰
" यहाँ शिरडी जैसा आध्यात्मिक वातावरण नहीं है और मैं अपने आप को अत्याधिक कष्ट में महसूस कर रहा हूँ बावजूद इसके कि हमसा मेरे साथ एक छत के नीचे हैं और उनका प्रभामँडल बहुत शक्तिशाली है। मैं वैसे ही उठना चाहता हूँ जैसे कि शिरडी में उठता था, पर नहीं उठ पाया और सूर्योदय से पूर्व मेरी प्रार्थना पूरी करने के लिए मुझे काफी मेहनत करनी पड़ी। " #
# पाठकों की सुविधा के लिए और निरँतरता को बनाए रखने के लिए यह पँक्तियाँ पहले जोड़ कर लिख दी गई हैं।
आगे जारी रहेगा॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰
जय साईं राम