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Thursday, June 28, 2012

ॐ साईं राम


४ जून, मँगलवार, १९१२-
अमरावती-


प्रातः मैं जल्दी उठा, प्रार्थना की और हॅाल में बैठ कर पँजीकरण कानून के प्रमाण खोजने लगा। बाद में श्री असगा खान आए और मैंने उनके लिए यिओतवाल में प्रस्तुत करने के लिए याचिका तैयार की। दोपहर के भोजन के बाद मैं लेटा पर आराम नहीं कर सका, अतः उठा और बैठ कर पढ़ने लगा। केलकर ने महारालता में बम्बई सरकार के केसरी से सुरक्षा की माँग की कार्यवाही के खिलाफ बहुत अच्छा विरोध प्रस्तुत किया है। उन्होंने कथित ठेस पहुँचाने वाले लेखों का अनुवाद किया है। अनुवाद में कुछ सुधार की गुन्जाईश है और मैंने सुधार करने का सोचा भी परन्तु उसके लिए सँदर्भ पुस्तकों की आवश्यकता थी और दिन में बहुत ज़्यादा गर्मी के कारण भी मैंने कार्य कल के लिए छोड़ दिया। 

मैं हवा खाने के लिए वी॰ के॰ काले के साथ गया और फिर बुरुँगाँवकर , केसारिसा और ब्वाजी के साथ बात करने बैठा। 

आज मुझे शिरडी से माधवराव देशपाँडे ने साईं महाराज के कहने पर एक पत्र भेजा है जिसमें मुझे आदेश दिया है कि मैं श्रीमान करखानिस को मिलूँ और उन्हें अपनी पत्नि को वापिस बुलाने और उसके साथ अच्छा व्यवहार करने को कहने को कहूँ। साईं महाराज ने कहा है कि वह बहुत भाग्यशालिनी स्त्री है और उसकी उपस्थिति कारखानिस और मुझे बहुत लाभ पहुँचाएगी। करखानिस यहाँ नहीं है। जब वह अपनी छुट्टी से बापिस आएगा तब मैं अपनी ओर से पूरी कोशिश करूँगा।


जय साईं राम