ॐ साईं राम
सौभाग्यवश हम सब के लिए बालकृष्ण, उर्फ बाबासाहेब खापर्डे जो कि जी॰एस॰खापर्डे के सबसे बड़े पुत्र हैं ने अपने पिता की जीवनी लिखी । यह जीवनी मराठी में लिखी गई थी और सबसे पहले १९६२ में प्रकाशित हुई थी। इसकी भूमिका में लेखक ने प्रारम्भ में ही स्पष्ट रूप से कहा है कि पुस्तक " जीवनी नहीं है अपितु दादा साहेब खापर्डे की डायरी में से ली गई सँशोधित सामग्री है।"
जीवनी के नायक का जन्म २७ अगस्त १८५४ को गणेश चतुर्थी के दिन हुआ था अतः उनका नाम गणों के स्वामी पर रखा गया। अब हम गणेश के जीवन का कुछ अवलोकन करेंगे। उनके पिता श्रीकृष्ण नारहार उर्फ बापू साहेब जिन्होंने बचपन में बहुत गरीबी देखी थी, मात्र अपने उद्यम और कड़ी मेहनत से ब्रिटिश राज में सी॰पी॰ प्रान्त और बेरार के तहसीलदार (मामलेदार) के पद पर पहुँचे थे।
गणेश की प्रारम्भिक और माध्यमिक शिक्षा नागपुर और अमरावती में हुई थी। वह मैट्रिक में दो बार फेल हुए क्योंकि उनकी रूचि पाठ्यक्रम से अलग विषयों में और पुस्तकों में अधिक थी। साथ ही वह गणित में कमज़ोर थे। १८७२ में मैट्रिक के बाद उन्होंने बम्बई के एलफिन्स्टन कॅालेज में दाखिला लिया। वह डा॰ रामाकृष्णा भँडारकर के जो कि सँस्कृत के प्रोफेसर थे, चहेते विद्यार्थी थे। गणेश ने अपने बचपन में अकोला में एक शास्त्री की देखरेख में सँस्कृत का अध्ययन बहुत विस्तृत रूप से किया था, अतः उन्हें विषय की बेहतरीन जानकारी थी। साथ ही, वह सँस्कृत साहित्य के लोलुप पाठक थे, और एलफिन्सटन कॅालेज में प्रवेश लेने के पूर्व ही वह बान की कादम्बरी और भवभूति की उत्तररामचरित्र कँठस्थ कर चुके थे। अतः कॅालेज में पढ़ाई जाने वाली सँस्कृत तो उनके लिए बच्चों का खेल ही थी। उन्हें अँग्रेज़ी साहित्य के पठन में भी रूचि थी। प्रोफेसर वर्ड्सवर्थ जो कि विलियम वर्ड्सवर्थ के, जो कि अँग्रेज़ी साहित्य के प्रख्यात प्राकृतिक कवि थे, के पोते थे। इन दो प्रोफेसरों की देख रेख में उन्होंने उन दो भाषाओं का गहन ज्ञान अर्जित कर लिया था। असल में उनका सँस्कृत ज्ञान इतना उत्तम था कि उन्हें आर्य समाज के सँस्थापक, स्वामी दयानन्द सरस्वती के साथ वाद विवाद के लिए एकमत से चुन लिया गया था, जब स्वामी एलफिन्स्टन कॅालेज में निरीक्षण के लिए आए थे। आश्चर्य नहीं है कि स्वामी ने स्वयँ गणेश की उनके उत्तम प्रदर्शन के लिए प्रशँसा की थी।
आगे जारी रहेगा॰॰॰॰॰॰॰
जय साईं राम
सौभाग्यवश हम सब के लिए बालकृष्ण, उर्फ बाबासाहेब खापर्डे जो कि जी॰एस॰खापर्डे के सबसे बड़े पुत्र हैं ने अपने पिता की जीवनी लिखी । यह जीवनी मराठी में लिखी गई थी और सबसे पहले १९६२ में प्रकाशित हुई थी। इसकी भूमिका में लेखक ने प्रारम्भ में ही स्पष्ट रूप से कहा है कि पुस्तक " जीवनी नहीं है अपितु दादा साहेब खापर्डे की डायरी में से ली गई सँशोधित सामग्री है।"
जीवनी के नायक का जन्म २७ अगस्त १८५४ को गणेश चतुर्थी के दिन हुआ था अतः उनका नाम गणों के स्वामी पर रखा गया। अब हम गणेश के जीवन का कुछ अवलोकन करेंगे। उनके पिता श्रीकृष्ण नारहार उर्फ बापू साहेब जिन्होंने बचपन में बहुत गरीबी देखी थी, मात्र अपने उद्यम और कड़ी मेहनत से ब्रिटिश राज में सी॰पी॰ प्रान्त और बेरार के तहसीलदार (मामलेदार) के पद पर पहुँचे थे।
गणेश की प्रारम्भिक और माध्यमिक शिक्षा नागपुर और अमरावती में हुई थी। वह मैट्रिक में दो बार फेल हुए क्योंकि उनकी रूचि पाठ्यक्रम से अलग विषयों में और पुस्तकों में अधिक थी। साथ ही वह गणित में कमज़ोर थे। १८७२ में मैट्रिक के बाद उन्होंने बम्बई के एलफिन्स्टन कॅालेज में दाखिला लिया। वह डा॰ रामाकृष्णा भँडारकर के जो कि सँस्कृत के प्रोफेसर थे, चहेते विद्यार्थी थे। गणेश ने अपने बचपन में अकोला में एक शास्त्री की देखरेख में सँस्कृत का अध्ययन बहुत विस्तृत रूप से किया था, अतः उन्हें विषय की बेहतरीन जानकारी थी। साथ ही, वह सँस्कृत साहित्य के लोलुप पाठक थे, और एलफिन्सटन कॅालेज में प्रवेश लेने के पूर्व ही वह बान की कादम्बरी और भवभूति की उत्तररामचरित्र कँठस्थ कर चुके थे। अतः कॅालेज में पढ़ाई जाने वाली सँस्कृत तो उनके लिए बच्चों का खेल ही थी। उन्हें अँग्रेज़ी साहित्य के पठन में भी रूचि थी। प्रोफेसर वर्ड्सवर्थ जो कि विलियम वर्ड्सवर्थ के, जो कि अँग्रेज़ी साहित्य के प्रख्यात प्राकृतिक कवि थे, के पोते थे। इन दो प्रोफेसरों की देख रेख में उन्होंने उन दो भाषाओं का गहन ज्ञान अर्जित कर लिया था। असल में उनका सँस्कृत ज्ञान इतना उत्तम था कि उन्हें आर्य समाज के सँस्थापक, स्वामी दयानन्द सरस्वती के साथ वाद विवाद के लिए एकमत से चुन लिया गया था, जब स्वामी एलफिन्स्टन कॅालेज में निरीक्षण के लिए आए थे। आश्चर्य नहीं है कि स्वामी ने स्वयँ गणेश की उनके उत्तम प्रदर्शन के लिए प्रशँसा की थी।
आगे जारी रहेगा॰॰॰॰॰॰॰
जय साईं राम