ॐ साईं राम
२९ दिसँबर १९११ की शिरडी डायरी की पाद टिप्पणी में, जो कि बाद में जोड़ी गई थी, यह लिखा गया-
" 'हमसा' ने यह सब मुझे तब बताया जब वह हमारे मेहमान थे। बाद में वह सब झूठ सिद्ध हुआ। वह कभी मान सरोवर या हिमालय पर गए ही नहीं थे, और बाद में बुरे चरित्र के साबित हुए। गजानन पुरोहित उनके सह अपराधी थे और असल में दोनों ही पुलिस के जासूस थे। "
१४ जून १९१३ की उनकी प्रविष्टि में दादा साहेब ने लिखा है ( साईं लीला में यह प्रविष्टि नहीं दी गई है )-
" हमसा ने बहुत से लोगों को साधु बन कर ठगा है। "
यह भी महत्वपूर्ण है कि २९ दिसँबर १९११ की प्रविष्टि में जो 'ऊदी' के बारे में और त्रिशूल से गवर्नर को मार भगाने की जो टिप्पणियाँ मिलती हैं, उस समय हमसा शिरडी में ही थे। कोई आश्चर्य नहीं है कि साईं बाबा को हमसा के षडयँत्र के बारे में पता था और उन्होंने अपने विश्वसनीय भक्त पर आए किसी भी खतरे को दूर भगाने के लिए उन्होंने अपनी शक्तियों का प्रयोग किया।
जय साईं राम
२९ दिसँबर १९११ की शिरडी डायरी की पाद टिप्पणी में, जो कि बाद में जोड़ी गई थी, यह लिखा गया-
" 'हमसा' ने यह सब मुझे तब बताया जब वह हमारे मेहमान थे। बाद में वह सब झूठ सिद्ध हुआ। वह कभी मान सरोवर या हिमालय पर गए ही नहीं थे, और बाद में बुरे चरित्र के साबित हुए। गजानन पुरोहित उनके सह अपराधी थे और असल में दोनों ही पुलिस के जासूस थे। "
१४ जून १९१३ की उनकी प्रविष्टि में दादा साहेब ने लिखा है ( साईं लीला में यह प्रविष्टि नहीं दी गई है )-
" हमसा ने बहुत से लोगों को साधु बन कर ठगा है। "
यह भी महत्वपूर्ण है कि २९ दिसँबर १९११ की प्रविष्टि में जो 'ऊदी' के बारे में और त्रिशूल से गवर्नर को मार भगाने की जो टिप्पणियाँ मिलती हैं, उस समय हमसा शिरडी में ही थे। कोई आश्चर्य नहीं है कि साईं बाबा को हमसा के षडयँत्र के बारे में पता था और उन्होंने अपने विश्वसनीय भक्त पर आए किसी भी खतरे को दूर भगाने के लिए उन्होंने अपनी शक्तियों का प्रयोग किया।
जय साईं राम