ॐ साईं राम
परिशिष्ट-१
दादा साहेब खापर्डे की "शिरडी डायरी" के बारे में कुछ अन्य जानकारी-
वी॰बी॰खेर कृत-
अगस्त १९८५ से माननीय श्री गणेश श्रीकृष्ण खापर्डे की "शिरडी डायरी" श्री साईं लीला में महीने दर महीने छापी जा रही है। शिरडी डायरी का सारतत्व की प्रतिलिपी सर्वप्रथम १९२४-१९२५ की श्री साईं लीला में प्रकाशित हुई थी। मैंने जानबूझ कर जो भी प्रकाशित किया गया था उसे सारतत्व कहा है क्योंकि मुझे नहीं लगता कि सम्पूर्ण शिरडी डायरी अभी तक प्रकाश में आई है।
जब पहली बार शिरडी डायरी श्री साईं लीला में पहली बार क्रमवार छापी गई थी तब जी॰एस॰खापर्डे, जो कि स्वरगीय लोकमान्य तिलक के दाहिने हाथ थे, सक्रिय केन्द्रिय राजनीति की परिधि से अवकाश लि चुके थे। राजनीतिक आकाश पर महात्मा गाँधी के उदय ने भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस और जन साधारण पर जादू सा कर दिया था।
खापर्डे के सदगुरू और आध्यात्मिक गुरू साईं बाबा भी शरीर त्याग चुके थे। और खापर्डे अर्ध-अवकाश की स्थिति में थे। उनके पास अपने जीवन को पीछे मुड़ कर देखने का और अपनी उन रूचियों के बारे में सोचने का, जिन्हें वह अपनी भागदौड़ की राजनीतिक ज़िन्दगी में एक कार्यकर्ता और नेता होने के कारण आगे नहीं बढ़ा पाए थे, काफी समय था। अतः उनकी सहमति और जानकारी से ही शिरडी डायरी का पहली बार १९२४-१९२५ में श्री साईं लीला के प्रारम्भिक अँकों में प्रकाशन किया गया। पाठकगण यहाँ उचित रूप से प्रश्न कर सकते हैं कि किन आधारों पर मैं ऐसा निश्चयपूर्वक कह सकता हूँ। और उन्हें ऐसा पूछने का अधिकार भी है। मुझे इस प्रश्न का उत्तर देना होगा और पाठकों के समक्ष मेरे पास एकत्रित सामग्री रखनी होगी।
आगे जारी रहेगा॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰
जय साईं राम
परिशिष्ट-१
दादा साहेब खापर्डे की "शिरडी डायरी" के बारे में कुछ अन्य जानकारी-
वी॰बी॰खेर कृत-
अगस्त १९८५ से माननीय श्री गणेश श्रीकृष्ण खापर्डे की "शिरडी डायरी" श्री साईं लीला में महीने दर महीने छापी जा रही है। शिरडी डायरी का सारतत्व की प्रतिलिपी सर्वप्रथम १९२४-१९२५ की श्री साईं लीला में प्रकाशित हुई थी। मैंने जानबूझ कर जो भी प्रकाशित किया गया था उसे सारतत्व कहा है क्योंकि मुझे नहीं लगता कि सम्पूर्ण शिरडी डायरी अभी तक प्रकाश में आई है।
जब पहली बार शिरडी डायरी श्री साईं लीला में पहली बार क्रमवार छापी गई थी तब जी॰एस॰खापर्डे, जो कि स्वरगीय लोकमान्य तिलक के दाहिने हाथ थे, सक्रिय केन्द्रिय राजनीति की परिधि से अवकाश लि चुके थे। राजनीतिक आकाश पर महात्मा गाँधी के उदय ने भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस और जन साधारण पर जादू सा कर दिया था।
खापर्डे के सदगुरू और आध्यात्मिक गुरू साईं बाबा भी शरीर त्याग चुके थे। और खापर्डे अर्ध-अवकाश की स्थिति में थे। उनके पास अपने जीवन को पीछे मुड़ कर देखने का और अपनी उन रूचियों के बारे में सोचने का, जिन्हें वह अपनी भागदौड़ की राजनीतिक ज़िन्दगी में एक कार्यकर्ता और नेता होने के कारण आगे नहीं बढ़ा पाए थे, काफी समय था। अतः उनकी सहमति और जानकारी से ही शिरडी डायरी का पहली बार १९२४-१९२५ में श्री साईं लीला के प्रारम्भिक अँकों में प्रकाशन किया गया। पाठकगण यहाँ उचित रूप से प्रश्न कर सकते हैं कि किन आधारों पर मैं ऐसा निश्चयपूर्वक कह सकता हूँ। और उन्हें ऐसा पूछने का अधिकार भी है। मुझे इस प्रश्न का उत्तर देना होगा और पाठकों के समक्ष मेरे पास एकत्रित सामग्री रखनी होगी।
आगे जारी रहेगा॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰
जय साईं राम